शनिवार, 13 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - २/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*मेरे हिरदै लागौ शब्द बान,*
*ताकि मारे सतगुरु सुजान ॥(टेक)* 
*यह दशौं दिशा मन करतौ दौड,*
*बेधत ही रहि गयौ ठौड ।* 
*चलि न सकै कहुं पैंड एक,*
*देषौ मांहिं कलेजै भयौ छेक ॥१॥* 
*ऊपरि घाव न दीसै कोइ,*
*भीतरि नष शिष लीयौ पोइ ।* 
*कोइ न जानै मेरी पीर,*
*सो जानै जाकै लग्यौ तीर ॥२॥* 
मेरे हृदय में वह शब्दबाण(ज्ञानभक्ति का उपदेश) लग गया है जो मेरे ज्ञानी सद्गुरु ने उचित लक्ष्य बनाकर मारा है ॥टेक॥ 
मेरा यह मन चारों ओर(दशों दिशाओं में) दौड़ता रहता है । अतः उसके लगते ही(यह मेरा मन) चंचलता त्याग कर स्थिर हो गया है । इसे देखो । यह बाण मेरे कलेजे(हृदय) में छेद कर वहाँ रुक गया है ॥१॥ 
यद्यपि उसके लगने से प्रत्यक्ष में कोई आघात नहीं दिखायी दे रहा है, परन्तु उसने अन्त: प्रविष्ट होकर नख से शिखा तक सब कुछ छिन्न-भिन्न कर दिया है । इससे हो रही पीड़ा को कोई देख नहीं पा रहा है । इसे तो वही जान सकता है जिसको ऐसा शब्द बाण लगा हो ॥२॥
(क्रमशः)

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