शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ५/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*देव भूत पिसाच राक्षस मनुष पशु अरु पंषि ।* 
*अगिन जलचर कीट कृमि कुल गनै कौंन असंषि ॥२॥* 
*भिन्न भिन्न सुभाव कीये भिन्न भिन्न अहार ।* 
*भिन्न भिन्न हि युक्ति राषी भिन्न भिन्न बिहार ॥३॥* 
*भिन्न बांनी सकल जांनी एक एक न मेल ।* 
*कहत सुन्दर मांहिं बैठा करैं ऐसा षेल ॥४॥* 
इस संसार में असंख्य देवता, भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, मनुष्य, पशु एवं पक्षी, अग्निचर, जलचर, कीट, पतंग आदि हैं । इनकी गणना कौन करे ! ॥२॥ 
इनका भिन्न-भिन्न स्वभाव है भिन्न भिन्न आहार है, जीवन के भिन्न भिन्न उपाय हैं, भिन्न भिन्न आचार हैं ॥३॥ 
इनकी वाणी(बोलचाल) भी भिन्न है । किसी एक का दूसरे से कोई मेल नहीं है । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – सभी के हृदय में विराजमान वे प्रभु ही ऐसा आश्चर्यमय खेल खेल रहे हैं ॥४॥
(क्रमशः)

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