#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*देव भूत पिसाच राक्षस मनुष पशु अरु पंषि ।*
*अगिन जलचर कीट कृमि कुल गनै कौंन असंषि ॥२॥*
*भिन्न भिन्न सुभाव कीये भिन्न भिन्न अहार ।*
*भिन्न भिन्न हि युक्ति राषी भिन्न भिन्न बिहार ॥३॥*
*भिन्न बांनी सकल जांनी एक एक न मेल ।*
*कहत सुन्दर मांहिं बैठा करैं ऐसा षेल ॥४॥*
इस संसार में असंख्य देवता, भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, मनुष्य, पशु एवं पक्षी, अग्निचर, जलचर, कीट, पतंग आदि हैं । इनकी गणना कौन करे ! ॥२॥
इनका भिन्न-भिन्न स्वभाव है भिन्न भिन्न आहार है, जीवन के भिन्न भिन्न उपाय हैं, भिन्न भिन्न आचार हैं ॥३॥
इनकी वाणी(बोलचाल) भी भिन्न है । किसी एक का दूसरे से कोई मेल नहीं है । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – सभी के हृदय में विराजमान वे प्रभु ही ऐसा आश्चर्यमय खेल खेल रहे हैं ॥४॥
(क्रमशः)
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