शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

= १८ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*काचा पाका जब लगै, तब लग अंतर होइ ।*
*काचा पाका दूर कर, दादू एकै होइ ॥*
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साभार ~ @Rajkumar Singhani

*संत बाबा शेख फरीद*
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शेख फरीद के पास कभी एक युवक आया। और उस युवक ने पूछा कि सुनते है कि हम जब मंसूर के हाथ काटे गये, पैर काटे गये। तो मंसूर को कोई तकलीफ न हुई, विश्वास नहीं आता। पैर में कांटा गड़ जाता है, तो तकलीफ होती है। हाथ-पैर काटने से तकलीफ न हुई होगी? यह भी हम सुनते है कि जीसस को जब सूली पर लटकाया गया,तो वे जरा भी दुःखी न हुए। 
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जीसस ने अंतिम क्षण में जो कहा वह विश्वास के योग्य नहीं है। उस आदमी ने कहा, जीसस ने यह कहा कि क्षमा कर देना इन लोगों को, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है। उस आदमी ने कहा कि विश्वास नहीं आता कि कोई मारा जाता हुआ आदमी इतनी करुणा दिखा सकता है। उस वक्त तो वह क्रोध से भर जाएगा।
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शेख फरीद खूब हंसने लगा। और उसने कहा कि तुमने अच्छा सवाल उठाया। लेकिन सवाल का जवाब मैं बाद में दूँगा, मेरा एक छोटा सा काम कर लाओ। पास में पडा हुआ एक नारियल उठाकर दे दिया उस आदमी को, और कहा कि इसे फोड लाओ, लेकिन ध्यान रहे, इसकी गिरी को पूरा बचा लाना, गिरी टूट न जाये। 
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लेकिन वह नारियल बिलकुल ही कच्चा था। उस आदमी ने कहा, माफ कीजिए, यह काम मुझसे न होगा। नारियल बिलकुल कच्चा है। और अगर मैंने इसकी खोल तोड़ी तो गिरी भी टूट जायेगी। तो उस फकीर ने कहा कि उसे रख दो। दूसरा नारियल उसने दिया जो कि सूखा था और कहा कि अब इसे तोड़ लाओ। इसकी गिरी तो तुम बचा सकोगे। उस आदमी ने कहा, इसकी गिरी बच सकती है।
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तब बाबा फरीद ने कहा मैंने तुम्हें जवाब दिया, कुछ समझ में आया? उस आदमी ने कहा, मेरी कुछ समझ में नहीं आया। नारियल से और मेरे जवाब का क्या संबंध है? मेरे सवाल का क्या संबंध है। 
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बाबा शेख फरीद ने कहा, यह नारियल भी रख दो, कुछ फोड़ना-फाड़ना नहीं है। मैं तुमसे यह कहा रहा हूं। कि एक कच्चा नारियल है, जिसकी गिरी और खोल अभी आपस में जुड़ी हुई है। अगर तुम उसकी खोल को चोट पहुंचाओगे तो उसकी गिरी टुट जायेगी। फिर एक सुखा नारियल है। सूखे नारियल और कच्चे नारियल में फर्क ही क्या है? एक छोटा सा फर्क है कि सूखे नारियल की गिरी सिकुड़ गई है भीतर और खोल से अलग हो गई है। गिरी और खोल के बीच में एक फासला, एक डिस्टेंस हो गया है। एक दूरी हो गई है। अब तुम कहते हो कि इसकी हम खोल तोड़ देंगे तो गिरी बच सकती है। तो मैंने तुम्हारे सवाल का जवाब दे दिया।
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मैं फिर भी नहीं समझा, आपने जो कहा है। तब बाबा फरीद ने कहा जाओ मरो और समझो। इसके बिना तुम समझ नहीं सकते। लेकिन तब भी तुम समझ नहीं पाओगे, क्योंकि तब तुम बेहोश हो जाओगे। खोल और गिरी एक दिन अलग होंगे, लेकिन तब तुम बेहोश हो जाओगे। 
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अगर समझना है तो अभी खोल और गिरी को अलग करना सिख लो। अभी मैं भी जिंदा हूं। और अगर खोल और गिरी अलग हो गये तो समझना मोत खत्म हो गई। वह फासला पैदा होते ही हम जानते है कि खोल अलग,गिरी अलग। अब खोल टूट जायेगी तो भी में बचूंगा। तो भी मेरे टूटने का कोई सवाल नहीं है, मेरे मिटने का कोई सवाल नहीं है। 
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मृत्यु घटित होगी, तो भी मेरे भीतर प्रवेश नहीं कर सकेगी। मेरे बाहर ही घटित होगी। यानी वही मरेगा जो मैं नहीं हूं, जो मैं हूं वह बच जायेगा। ध्यान या समाधि का यही अर्थ है कि हम अपनी खोल और गिरी को अलग करना सीख जाएं। वे अलग हो सकते है। क्योंकि वे अलग हैं, वे अलग-अलग जाने जा सकते हैं। 
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दोनों का स्वभाव भिन्न है ये कुदरत का एक चमत्कार ही है कि दोनों कैसे मिले हैं। एक सूक्ष्म है एक स्थूल है। इसलिए ध्यान को मैं कहता हूं, स्वेच्छा से मृत्यु में प्रवेश, बालेंटरी एन्ट्रेंस इनटू डेथ अपनी ही इच्छा से मौत में प्रवेश। और जो आदमी अपनी इच्छा से मौत में प्रवेश कर जाता है, वह मौत का साक्षात्कार कर लेता है। कि यह रही मौत और मैं अभी भी हूं।
ओशो ~ मैं मृत्यु सिखाता हूं

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