#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*अंमृत कौ तहां आवै ग्रास,*
*चेला चांटी रहै पास ॥*
*सब काहू सौं बांटि षाइ,*
*तहां बिछुरि जमात कहूं न जाइ ॥३॥*
*यह भोजन पावै बार बार,*
*भरि भरि पेट करै अहार ।*
*भागी भूष अघाइ प्रान,*
*ऐसी सुन्दर नगरी सुष निधान ॥४॥*
जहाँ अमृतमय भोजन मिले, भगवद्भजन के रसिकों से मेल हो सके कि वह भजनरस सबमें परस्पर विभक्त करवाया जा सके । कोई भूखा रहने से, विवश होकर, साथ न छोड़ दे ॥३॥
उसे बारम्बार भोजन मिल सके ताकि उसका पेट सदा भोजन से भरा रहे । कभी भूख की तडफन न हो, प्राण सन्तृप्त रहें । ऐसी सुन्दर नगरी में आवास स्थान मिलने से सर्वविध सुविधा होगी ॥४॥
(क्रमशः)
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