शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ५/१) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*तात्कालिक चिन्तन* 
*हम देषि बसंत कियौ बिचार ।* 
*यह माया षेलै अति अपार ॥(टेक)* 
*यहु छिन छिन मांहिं अनंक रङ्ग,*
*पुनि कहुं बिछुरै कहुं करै संग ।* 
*यहु गुन धरि बैठी कपट भाइ,*
*यहु आपुहि जनमैं आपु षाइ ॥१॥* 
*यहु कहुं कामिनि कहुं भई कान्त,*
*यहु कहुं मारै कहूं दयावंत ।* 
*यहु कहुं जागै कहुं रही सोइ,*
*यहु कहूं हंसै कहुं उठै रोइ ॥२॥* 
हमने वह बसन्त का समय देख कर यह चिन्तन किया कि इस माया के खेल का पार नहीं पाया जा सकता ॥टेक॥ 
यह तो क्षण क्षण में अपना रंग बदलती है, कहीं बिछुट जाती है, कहीं पुनः साथ पकड़ लेती है । यह अनेक कपट के गुणों से परिपूर्ण है । यह स्वयं उत्पन्न करती है, स्वयं ही उसको खा जाती है ॥१॥ 
यह कहीं पत्नी बनी बैठी है, कहीं पति, कहीं हिंसक बनी है तो कहीं दयालु । कहीं यह जाग्रत् है तो कहीं सुप्त । कहीं हँसती है, कहीं उठ कर रोने लगती है ॥२॥
(क्रमशः)

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