मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

= २५ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*बैठे सदा एक रस पीवै, निर्वैरी कत झूझै ।*
*आत्मराम मिलै जब दादू, तब अंग न लागै दूजै ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
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जर्मनी के एक बहुत बड़े कवि हेनरिक हेन ने लिखा है कि वह तीन दिन के लिए ज़ंगल में खो गया एक बार। इतना भूखा, इतना भूखा, कि जब पूर्णिमा का चांद निकला तो उसे लगा कि रोटी तैर रही है। वह बड़ा हैरान हुआ। उसने कविताएं पहले बहुत लिखी थीं, कभी भी नहीं सोचा था कि चांद में और रोटी दिखाई पड़ेगी। हमेशा किसी सुंदरी का मुख दिखाई पड़ता था। आज एकदम रोटी दिखाई पड़ने लगी। उसने बहुत चेष्टा भी की कि सुंदरी का मुख देखे, लेकिन जब पेट भूखा हो, तीन दिन से भूखा हो, पांव में छाले पड़े हों और जान जोखिम में हो, कहां की सुंदर स्त्री ! ये सब तो सुख— सुविधा की बातें हैं।
चांद दिखता है कि रोटी तैर रही है। आकाश में रोटी तैर रही है। बाहर से जो मिलता है वह भीतर का ही प्रक्षेपण है। रस भीतर है। जीवन का सारा सार भीतर है।
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'स्वाभाविक रूप से जो शून्यचित्त है—प्रकृत्यो शून्यचित्तस्य।’
और जबरदस्ती चेष्टा न करें, जबरदस्ती की चेष्टा काम नहीं आती। जबरदस्ती अपने को बिठाल लो पद्यमासन लगा कर, आंख बंद करके, पत्थर की तरह मूर्ति बन कर बैठ जाएं, इससे कुछ भी न होगा। भीतर उबलते रहेंगे, आग जलती रहेगी। भागदौड़ जारी रहेगी। वासना का तूफान उठेगा, अंधड़ उठेंगे। कुछ भी बदलेगा नहीं।
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प्रकृत्या— धीरे— धीरे समझ पूर्वक, चेष्टा से नहीं, जबरदस्ती आरोपण से नहीं। कबीर कहते हैं, साधो सहज समाधि भली। सहजता से। समझें जीवन को। देखें। जहां—जहां सुख मिलता हो वहां—वहां आंख बंद करके गौर से देखें— भीतर से आ रहा, बाहर से? सदा पाएंगे, भीतर से आ रहा है। और जहां—जहां जीवन में दुख मिलता हो वहां भी गौर से देखें, सदा पाएंगे, दुख का अर्थ ही इतना होता है, भीतर से संबंध छूट गया।
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सुख का इतना ही अर्थ होता है, भीतर से संबंध जुड़ गया। किस बहाने जुड़ता है यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। भीतर से जब भी संबंध जुड़ जाता है, सुख मिलता है। और भीतर से जब भी संबंध छूट जाता है, दुख मिलता है।
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किसी ने गाली दे दी, दुख मिलता है। लेकिन समझें, गाली केवल इतना ही करती है कि भूल जाते हैं अपने को। भीतर से संबंध छूट जाता है। गाली इतना उत्तेजित कर देती है कि याद ही नहीं रह जाती कि कौन हूं? एक क्षण में बावले हो जाते हैं ! उद्विग्न, विक्षिप्त। टूट गया संबंध भीतर से।
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मित्र आ गया बहुत दिन का बिछुड़ा, वर्षों की याद ! हाथ में हाथ ले लिया, गले से गले लग गए। एक क्षण को भीतर से संबंध जुड़ गया। इस मधुर क्षण में, इस मित्र की मौजूदगी में अपने से जुड़ गए। एक क्षण को भूल गईं चिंताएं, दिन के भार, दिन के बोझ खो गए। एक क्षण को अपने में डूब गए। यह मित्र केवल बहाना है। यह केवल निमित्त हो गया।
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जिस घड़ी में भी अपने से जुड़ जाते, सुख बरस जाता। जिस घड़ी अपने से टूट जाते, दुख बरस जाता।

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