बुधवार, 24 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१९.राग बसंत - ७/१) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
.
*देषौ, घट घट आतम राम निरन्तर,*
*षेलत सरस बसंत ।* 
*ऐसौ, ष्याली ष्याल कियौ है,*
*कब हुं न आवत अंत ॥(टेक)* 
*चारि षानि बिस्तार जगत यह,*
*चौरासी लष जंत ।* 
*षेचर भूचर अरु जल चारी,*
*बहु बिधि सृष्टि रचन्त ॥१॥* 
*धरती गगन पवन अरु पानी,*
*अग्नि सदा बरतंत ।* 
*चन्द सूर तारागन सबही,*
*देव यक्ष अगनन्त ॥२॥* 
प्रत्येक शरीर में वसंतोसव : 
देखो ! यह हमारा आत्माराम प्रत्येक शरीर में रसमय वसन्त का ऐसा खेल खेल रहा है कि जिसका अन्त ही नहीं दिखायी देता ॥टेक॥ 
इस चारों दिशाओं में विस्तृत जगत् में चौरासी लाख(८४०००००) जीव जन्तु हैं । इस विविध सृष्टि में आकाशचारी, पृथ्वीवासी, जलशायी आदि प्राणी हैं ॥१॥ 
ये प्राणी पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि(तेज) में सदा रहते हैं । चन्द्रमा, सूर्य, सभी तारागण तथा अगणित देव एवं यक्ष हैं ॥२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें