मंगलवार, 26 अगस्त 2014

= विनती का अँग ३४ =(७४)

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टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
*विनती का अँग ३४* 
*तुम को हम से बहुत हैं, हमको तुमसे नाँहिं ।* 
*दादू को जनि१ परिहरै२, तूँ रहु नैनहुं माँहिं ॥७४॥* 
टीका ~ हे स्वामिन् ! आपको तो हमारे जैसे सेवक बहुत हैं, परन्तु हम विरहीजनों को आप जैसा स्वामी और कहीं भी नहीं मिल सकता है । इसलिए अब आप हमारा त्याग नहीं करना और आप हमारे सदैव नेत्रों में बसना ॥ ७४ ॥
गज सिंह बीकानेर को, कियो बादशाह दूर ।
द्वादश वर्ष सेवा करी, भूखो रह्यो हजूर ॥
दृष्टान्त ~ एक बार बादशाह ने बीकानेर के राजा गजसिंह को किसी कारण, अपने दरबार से मुक्त कर दिया और उसका राज्य ले लिया । परन्तु राजा बारह वर्ष तक भूखा रहकर, प्रेम से बादशाह की सेवा करता रहा । फिर बादशाह ने पूछा ~ तुम्हारे पास राज्य तो नहीं है फिर सेवा कैसे करते हो ? राजा बोला ~ आपको तो मेरे समान बहुत है, किंतु मेरे लिये आपके समान कोई नहीं है । इस उत्तर से बादशाह ने प्रसन्न होकर उसका राज उसको वापिस दे दिया । 
(क्रमशः)

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