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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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१३ - केवल विनती । गजताल
राम संभालिये रे, विषम१ दुहेली२ बार ॥टेक॥
मँझ समुद्रां नावरी रे, बूडे खेवट - बाज३ ।
काढनहारा को नहीं, एक राम बिन आज ॥१॥
पार न पहुंचे राम बिन, भेरा भवजल माँहिं ।
तारणहारा एक तूँ, दूजा कोई नाँहिं ॥२॥
पार परोहन४ तो चले, तुम खेवहु सिरजनहार ।
भवसागर में डूब है, तुम बिन प्राण अधार ॥३॥
औघट६ दरिया क्यों तिरै, बोलहिथ५ बैसणहार ।
दादू खेवट राम बिन, कौण उतारे पार ॥४॥
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१३ - १५ में केवल उद्धारार्थ विनय कर रहे हैं - हे राम ! यह समय कठिन१ सँकट२ का है, हमारी संभाल करो ।
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हमारी जीवन - नौका ऐसे सँसार - समुद्र के मध्य है, जहां अच्छे - अच्छे होशियार केवटिया३ भी डूब जाते हैं । आज हमें निकालने वाला एक राम के बिना अन्य कोई भी नहीं दीखता ।
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हमारा जीवन - बेड़ा सँसार - समुद्र के विषय - जल में रुक रहा है, राम के बिना पार नहीं पहुँच सकता । राम ! आप ही एक तारने वाले हैं, अन्य कोई नहीं दीखता ।
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हे सृष्टि कर्ता ! यदि आप खेओ तो ही हमारी नौका४ पार जा सकती है, प्राणाधार ! आप बिना तो भव - सागर में डूबेहीगी ।
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यह सँसार - सागर दूस्तर६ है, इससे कैसे तैरा जाय ? जीवन - जहाज५ विषय - जल में बैठने वाला ही है । राम के बिना कौन पार उतारेगा ? राम ! कृपा करके पार करो ।
(क्रमशः)
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