#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*बहुतक दिवस भये मेरे सम्रथ सांईया ।*
*कोऊ कागर हू न पठाइ संदेस सुनांईया ॥(टेक)*
*पंथ निहारत जाइ उपाइ किये घने ।*
*मोहि असन बसन न सुहाइ तजे सुख आपने ॥१॥*
*कल न परत पल एक नहीं जक जीयरा ।*
*यह सुकि गई सब देह भया मुख पीयरा ॥२॥*
हे मेरे समर्थ स्वामिन् ! बहुत दिन हो गये, आपने कोई चिट्ठी पत्री भी न हीं दी कि हम को उधर का कोई सन्देश मिलता ॥टेक॥
आपके आगमन की प्रतीक्षा करते हुए, आपका समाचार पाने के लिए मैंने अनेक उपाय किये । आज मुझे, आपके बिना न भोजन प्रिय लगता है न वस्त्र मैंने आपके वियोग में अपने सभी शारीरिक सुख छोड़ दिये हैं ॥१॥
आपके बिना मैं अपने सब सुख चैन भूल गया हूँ । मेरी यह समस्त देह आपके वियोग में शुष्क हो गयी है । मेरी आकृति पीली हो गयी है ॥२॥
(क्रमशः)
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