गुरुवार, 11 जुलाई 2019

= पद १४ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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१४ - रँगताल
पार नहिं पाइये रे, राम बिना को निर्वाहणहार१ ॥टेक॥
तुम बिन तारण को नहीं, दूभर१ यहु सँसार ।
पैरत थाके केशवा, सूझे वार न पार ॥१॥
विषम२ भयानक भव - जला, तुम बिन भारी होइ ।
तू हरि तारण केशवा, दूजा नाँहीं कोइ ॥२॥
तुम बिन खेवट को नहीं, अतिर तिरा नहिं जाइ ।
औघट३ भेरा डूब है, नाँहीं आन उपाइ ॥३॥
यहु घट४ औघट विषम५ है, डूबत माँहिं शरीर ।
दादू कायर राम बिन, मन नहिं बांधे धीर ॥४॥
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हम सँसार - सिन्धु का पार नहीं पा रहे हैं । राम ! आप बिना हमको निभाने वाला१ कौन है ? 
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यह सँसार - समुद्र तैरने में कठिन१ है, आप बिना हमें कोई तारने वाला नहीं है । हे ! केशव ! योगादि साधनों से तैरते हुये हम थक गये हैं और अभी तक मध्य में ही हैं । 
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अब तो हमको इसका वार - पार भी नहीं दीख रहा है । दूस्तर२ भयानक भव - जल आप के बिना तैरने में भारी हो रहा है । हरे ! आप ही सँतारक हैं । 
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केशव ! आपके बिना इससे पार करने वाला केवट अन्य कोई भी नहीं है और हमारे लिये यह अतिर है, तैरा नहीं जाता । अन्य कोई उपाय दीखता नहीं । अत: दूस्तर३ सँसार - समुद्र में हमारा जीवन - बेड़ा डूबेगा ही । 
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यह हमारा अन्त:करण४ भयँकर५ दूस्तर विषय जल में है और इन्द्रियादि शरीर डूब रहा है । राम ! आपके बिना मन कायर हो रहा है, धैर्य नहीं रख सकता । अत: आप हमारा उद्धार शीघ्र ही करने की कृपा करें ।
(क्रमशः)

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