#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*भूष न प्यास उदास फिरौं निस बासरा ।*
*इन नैंन न आवत नींद नहीं कछु आसरा ॥३॥*
*दूभर रैनि बिहाइ रहौं क्यौं एकली ।*
*मैं छाडे सकल सिंगार लई गलि मेषली ॥४॥*
*चन्दन षौरि तजीर भस्म लगाई है ।*
*कछु तेल फुलेल न सीस जटा सु बढाई है ॥५॥*
अब न मुझे भूख लगती है, न प्यास; आपके वियोग में दिन रात उदास रहता हूँ । अब मुझे निद्रा भी नहीं आती । न मुझे अब अपना कोई अन्य आश्रय ही दिखायी दे रहा है ॥३॥
मुझ अकेली को यह रात्रि बिताना कठिन हो गया है । मैंने सभी श्रृंगार त्याग दिये हैं । अब गले में एक कथरी(मेखली) पहने रहती हूँ ॥४॥
अब मैंने चन्दन का चूर्ण त्याग कर शरीर पर भस्म लगाना आरम्भ कर दिया है । शिर के केशों पर तेल फुलेल न लगा कर जटा बढ़ा ली है ॥५॥
(क्रमशः)
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