शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

= पद १५ =

#daduji

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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१५ - रँगताल
क्यों हम जीवैं दास गुसाँई, 

जे तुम छाड़हु समर्थ साँई ॥टेक॥
जे तुम जन को मनहिं विसारा, 

तो दूसर कौण संभालनहारा ॥१॥
जे तुम परिहर रहो नियारे१, 

तो सेवक जाइ कवन२ के द्वारे ॥२॥
जे जन सेवक बहुत बिगारे, 

तो साहिब गरवा३ दोष निवारे ॥३॥
समर्थ सांई साहिब मेरा, 

दादू दास दीन है तेरा ॥४॥
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हे समर्थ स्वामिन् ! यदि आप हमको त्याग देंगे तो हम आपके भक्त कैसे जीवित रह सकेंगे ? 
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यदि आप अपने भक्त को मन से भूल जायं तो उसे अन्य कौन संभालने वाला है ? 
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यदि आप सेवक को त्याग कर अलग१ रहेंगे तो वह किसके२ द्वार पर जायगा ? 
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यदि सेवकजन बहुत बिगाड़ कर देते हैं, तो भी गँभीर३ हृदय स्वामी उनके दोषों को अपने मन से हटा कर उनकी रक्षा ही करते हैं । 
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भगवन् ! मेरे स्वामी तो आप सर्व प्रकार से समर्थ हैं और मैं आपका दीन दास हूं । अत: आप मुझे न त्यागिये, मेरा उद्धार करिये ।
(क्रमशः)

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