सोमवार, 8 जुलाई 2019

= सुन्दर पदावली(२४. राग काफी - ६/३) =

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
.
*अहंकार कौं धरत है हो तब लग जीव प्रमांन ।* 
*अंधकार तब भागि है हो जब सु उदै होइ भांन ॥६॥* 
*जीव शीव अंतर इहै हो देषहु प्रगट हि नैंन ।* 
*जैसैं जलतैं ऊपजै हो तरंग बुद्बुदा फैंन ॥७॥* 
*परमारथ करि देषिये तौ है सब ब्रह्म बिलास ।* 
*कहन सुनन कौं दूसरौ हो गावत सुन्दरदास ॥८॥* 
हाँ ! उस जीव को उन चेष्टाओं का अहंकार अवश्य होता है । उसका यह अहंकार द्वैत के नष्ट होने पर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे सूर्य के उदित होने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है ॥६॥ 
इस जीव और शिव में वही अन्तर है जो जल का अपनी तरंगों से हुआ करता है ॥७॥ 
परमार्थ दृष्टि से देखा जाय तो यह समस्त संसार ब्रह्म का ही विलास(क्रीड़ा) है । यहाँ यह द्वैत वाग्विलास मन्त्र है – ऐसा महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं ॥८॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें