बुधवार, 10 जुलाई 2019

= १८९ =



🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*ऐसा अचरज देखिया, बिन बादल बरषै मेह ।*
*तहँ चित चातक ह्वै रह्या, दादू अधिक स्नेह ॥* 
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साभार ~ Raj Gupt ‎

नानक के जीवन में उल्लेख है। एक रात वे पुकार रहे हैं परमात्मा को...पुकार रहे हैं परमात्मा को। आधी रात बीत गई और नानक की मां ने आकर उनको कहा कि अब बहुत हो गया, अब तुम सो भी जाओ, अब यह भजन कब तक चलेगा? 
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नानक ने कहा : मत कहो। मत रोको मुझे। सुनो ! बाहर बगीचे में आम की बाड़ी में पपीहा पुकार रहा है, पी कहां? पी कहां? नानक ने कहा : सुनो ! उससे मेरी होड़ बंधी है। जब तक वह चुप नहीं होगा, मैं भी चुप होने वाला नहीं हूं।
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उसी रात नानक के जीवन में क्रांति घटी। पपीहे से होड़ लगाओ। पपीहा नहीं थका, नानक ने कहा अपनी मां को, तो मैं क्यों थकूं? अभी पपीहे का गीत चल रहा है तो मेरा गीत क्यों रुके? मैं पपीहे से गया बीता नहीं हूं।
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और जो पपीहा बन गया--और पी कहां? पी कहां? पुकारा और पुकारा, और पुकारा, और सब पुकार पर दांव पर लगा दिया उसे पी निश्चित मिलते हैं। यही इस सूत्र की सूचना है। *झरि लागे महलिया*--जो चातक बन गया उसके शून्य महल में झर लग जाती है अमृत की। स्वाति बरसती है।
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*झरि लागे महलिया, गगन घइराय।*
नाद होता अनहद का और अमृत की वर्षा होती। जैसे बादल गरजते हैं ऐसे भीतर ओंकार का नाद गरजता है। एक ओंकार सतनाम। और जैसे वर्षा होती है और भूखी-प्यासी धरती तृप्त होती है ऐसे ही तुम्हारे भीतर अमृत बरसता है। और तुम्हारे भूखे-प्यासे प्राण, जन्मों-जन्मों की भूखी आत्मा तृप्त होती है।
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*झरि लागे महलिया, गगन घइराय।*
*खन गरजे खन बिजुली चमकै...*
कभी प्रकाश हो जाता है, कभी नाद हो जाता है।
*खन गरजे खन बिजुली चमकै, लहर उठे सोभा बरनि न जाए।*
और ऐसी मस्ती की लहर आती है कि उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। नाद भी है, प्रकाश भी है। अमृत बरस रहा है।
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*...लहर उठे सोभा बरनि न जाए।*
ऐसी मस्ती, ऐसी मादकता की लहर आती है कि आदमी डूब ही जाता उसमें, तल्लीन हो जाता है। उसका वर्णन नहीं हो सकता।
*सुन्न महल से अमृत बरसे, प्रेम अनंद होए साध नहाए ॥*
लेकिन वही नहा सकता है जिसने चातक जैसी साधना की हो। वही नहा सकता है जिसने, जस पनिहार धरे सिर गागर, ऐसा ध्यान संजोया हो। उसको ही साधु कहते हैं।
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साधु का अर्थ - जो सरल हो गया। साधु का अर्थ - जिसने अपने चित्त को, उसकी तरफ साध लिया। जो काम से विमुख हुआ, राम के सन्मुख हो गया। जिसने संसार की तरफ पीठ कर ली और परमात्मा की तरफ मुंह कर लिया चातक की तरह। पी कहां, पी कहां।
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*सुन्न महल से अमृत बरसे, प्रेम अनंद होए साध नहाए ॥*
और तब साधु के जीवन में दो फूल खिलते हैं प्रेम के और आनंद के। आनंद होता है अपने लिए वह आंतरिक फूल है। उसके प्राण आनंद की सुगंध से भर जाते हैं। और उसी आनंद की सुगंध जब दूसरों के नासापुटों में पड़ती है तो उनको प्रेम का अनुभव होता है।
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इसको खयाल में ले लेना। साधु के यह दो लक्षण है, भीतर उसके परम आनंद। लेकिन उसके भीतर तो तुम जा न सकोगे। उसे तो वही जानेगा, या उस जैसे जो हैं, वे जानेंगे। लेकिन तुम्हें उसके पास एक बात दिखाई जरूर पड़ेगी, वह तुम्हें भी दिखाई पड़ जाएगी, वह प्रेम। उसके भीतर जो घटा है, उसकी थोड़ी-थोड़ी बूंदें तुम पर भी पड़ेंगी।
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तो जहां तुम्हें आनंद और प्रेम घटता हुआ अनुभव में आ जाए, समझना कि मंदिर करीब है। समझना कि तुम तीर्थ के करीब आ गए। और जहां न प्रेम हो और न आनंद हो, जहां प्रेम की जगह सिर्फ द्वेष हो, जहां प्रेम की जगह सिर्फ कठोरता हो, जहां प्रेम की जगह सिर्फ तुम्हारी निंदा हो, जहां प्रेम की जगह तुम्हें पापी ठहराने का प्रयास हो, जहां प्रेम की जगह तुम्हें नरक भेजने का आयोजन हो, और जहां भीतर आनंद की जगह सिर्फ एक अहंकार हो, वहां से बच जाना। वहां से भाग खड़े हो जाना। वहां से जितनी जल्दी दूर निकल जाओ उतना अच्छा है क्योंकि तुम असाधु के पास पहुंच गए हो।
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और तुम्हारे तथाकथित साधुओं में सौ में निन्यानबे असाधु हैं। क्योंकि न तो वहां आनंद है, न वहां प्रेम है।
*सुन्न महल से अमृत बरसे, प्रेम अनंद होए साध नहाए ॥*
*खुली किवरिया मिटो अंधियरिया, धन सतगुरु जिन दिया है लखाए।*
अब किवाड़ खुल गए हैं। पुकारते रहोगे तो खुल ही जाते हैं। यह आश्वासन पक्का। यह गवाही पक्की। इस गवाही के पीछे बुद्ध और महावीर, और कृष्ण और कबीर, और मोहम्मद और मंसूर--सबके हाथ हैं। बड़ी लंबी महिमाशाली पुरुषों की कतार है, जो कहते हैं यह आश्वासन पक्का है। यह निरपवाद होता है। तुम पुकारो भर। तुम पूरे प्राण से पुकारो भर।
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*खुली किवरिया मिटो अंधियरिया, धन सतगुरु जिन दिया है लखाए।*
और उसी घड़ी तुम अपने सदगुरु का धन्यवाद कर पाओगे। उसी घड़ी तुम जानोगे कि तुमने तो कुछ भी नहीं दिया था। तुमने समर्पण के नाम पर दिया क्या था? तुम्हारे पास देने को क्या था? जब तुमने गुरु के चरणों में जाकर सिर रखा था तो तुम्हारे सिर में सिवाय भुस के और था क्या? तुमने दिया क्या था? लेकिन जो तुम्हें मिल गया है उसका मूल्य नहीं चुकाया जा सकता।
🌹🌹🌹*जस पनिहारी धरे सिर गागर # 8*
🌹🙏🌹🌹🌹*ओशो*

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