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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*खुशी तुम्हारी त्यों करो, हम तो मानी हार ।*
*भावै बन्दा बख्शिये, भावै गह कर मार ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
राजनीति से बच गये, यह तो शुभ हुआ, यह तो महाशुभ हुआ। इन सब से बच गये, क्योंकि हार गये। हार सौभाग्य है। उसे वरदान समझना। हारे को हरिनाम ! वह जो हारा, उसी के जीवन में हरिनाम का अर्थ प्रगट होता है। जीता, तो अकड़ जाता है। तो यह प्रभु की कृपा, सौभाग्य कि हार गये। निजपन के छोड़ते ही गंतव्य का आविर्भाव हो जायेगा। यह मैं —पन छोड़ दो। इस मैं —पन में अभी भी थोड़ी—सी धूमिल रेखा पुराने संस्कारों की रह गयी है।
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वह जो राजनीतिज्ञ होना चाहता था, वह जो लेखक, पत्रकार, प्रसिद्ध होना चाहता था, वह जो सुखी—संपन्न गृहस्थ होना चाहता था, उसकी थोड़ी—सी रेखा, थोड़ी—सी कालिख रह गयी है। इस निजपन को भी छोड़ दो। इसको भी हटा दो। वह सब हार गया, अब तक जो किया, लेकिन अभी भीतर थोड़ा—सा रस अस्मिता का बचा है, 'मैं' का बचा है। वह भी जाने दो। उसके जाते ही प्रकाश हो जायेगा। और तब पूछने की जरूरत न रहेगी कि गंतव्य क्या है? गंतव्य स्पष्ट होगा। आंख खुल जायेगी। गंतव्य कहीं बाहर थोड़े ही है ! गंतव्य कहीं जाने से थोड़े ही.......।
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सांख्य कहता है: आत्मा न तो जाती, न आती। तो गंतव्य कैसा? आत्मा वहीं है जहां होना चाहिए। ठीक उसी जगह बैठे हैं, जहां खजाना गड़ा है। स्वभाव में साम्राज्य है।
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बस यह थोड़ी—सी जो रेखा रह गयी है, वह भी स्वाभाविक है। इतने दिन तक उपद्रव में रहे तो वह उपद्रव थोड़ी—बहुत छाप तो छोड़ ही जाता है। उस छाप को भी पोंछ डालो। भूल ही जाओ अतीत को। यह अतीत की स्मृति भी जाने दो। जो नहीं हुआ, नहीं हुआ। अब तो समग्र भाव से यहां हो तो बस यहीं के हो रहो। न आगा न पीछा—यही क्षण सब कुछ हो जाये, तो इसी क्षण में परम शांति प्रगट, उस शांति में सब प्रगट हो जायेगा, सब स्पष्ट हो जायेगा।
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'मैं' के आसपास खड़ी हुई कोई भी मांग मत उठाओ। 'मैं' के पार कुछ मांगो। आज फिर एक बार जो अब तक जीया, जाना, पहचाना सब न्योछावर करो, लुटा दो ! भूलो, बिसरो; अतीत को जाने दो। जो नहीं हो गया, नहीं हो गया। राह खाली करो ताकि जो होने को है, वह हो। यह कूड़ा— कर्कट हटाओ।
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