मंगलवार, 9 जुलाई 2019

= १८७ =


🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*तुम को हमसे बहुत हैं, हमको तुमसे नांहि ।*
*दादू को जनि परिहरै, तूँ रहु नैंनहुँ मांहि ॥* 
========================
साभार ~ Soni Manoj

*÷ प्रार्थना ÷*
°°°°°°°°°°°°
परमात्मा की भक्ति में परमात्मा केवल उसी को वरण करेगा, जो बेशर्त हो । परमात्मा के मंदिर में तीनों तरह के लोग पूजा करने जा रहे हैं । एक तो वे लोग हैं, जो परमात्मा के मंदिर में कर्त्तव्यवश पूजा करने जा रहे हैं । क्योंकि सदा जैसा होता आ रहा है ......
.
मैंने सुना है कि एक सुबह - सुबह एक आदमी अभी दुकान के दरवाजे भी नहीं खुले थे, और अपने लड़के को बुला रहा था कि उठ गये या नहीं ?
तो लड़के ने कहा 'उठ गया हूं ।'
तो कहा, 'आटे में रद्दी आटा मिला दिया या नहीं ?
तो उसने कहा, 'मिला दिया पिताजी ।'
'और मिर्चों में लाल कंकड़ डाल दिये या नहीं ?'
उसने कहा, 'डाल दिये पिताजी ।'
'और गुड़ में गोबर मिलाया या नहीं ?'
उसने कहा, 'डाल दिया पिताजी । सब कर दिया, सब हो 
गया है जी ।' तो उसने कहा, 'चल फिर मंदिर हो आयें ।'
.
यह मंदिर है ? यह जिंदगी है ? वहां गोबर गुड़ में मिलाया जा रहा है और जब सब काम निपट गया तो मंदिर हो आयें । वह एक कर्तव्य है । एक रविवारीय धर्म है, कि रविवार को सुबह चर्च हो आयें । वह एक सामाजिक उपचार है; एक शिष्टाचार है । एक नियम, जिसको पूरा करना उचित है । और जिसके लाभ हैं; जिसकी सामाजिक प्रतिष्ठा है, उपयोगिता है । एक तो वह भी मंदिर जा रहा है, लेकिन उसकी प्रार्थना कभी परमात्मा तक नहीं पहुंच पायेगी क्योंकि उसने कभी प्रार्थना की ही नहीं है ।
.
एक वह भी वहां जा रहा है, जो संसार से परेशान हो गया है, जो दुखी हो गया है; जो जीवन का अनुभव नहीं ले पाया इतना समर्थ नहीं पाया अपने को, साहस नहीं जुटा पाया । जीवन से वंचित हो गया है, या वंचित रह गया है । वह भी आ रहा है थका-हारा, उस थके-हारे की प्रार्थना भी नहीं सुनी जा सकेगी । क्योंकि जो संसार को भी अनुभव करने में समर्थ नहीं है, वह सत्य को अनुभव करने में कैसे समर्थ हो पायेगा ? जो सपने में भी पूरा नहीं उतर सकता, वह सत्य में कैसे पूरा उतरेगा ? जो व्यर्थ को नहीं समझ पाता, वह सार्थक को नहीं समझ पायेगा । वह तो और बड़ी छलांग है ।
.
ऐसा आदमी निरंतर ईश्वर से कहता है कि तू तो मुझे स्वीकार है, तेरा संसार स्वीकार नहीं । यह स्वीकृति अधूरी है, क्योंकि अगर ईश्वर मुझे स्वीकार है तो सब मुझे स्वीकार है; क्योंकि सभी उसका है ।
.
स्वीकृति पूरी हो सकती है; तब उसका संसार भी स्वीकृत है । वह मुझे नर्क में भी डाल दे तो वह मुझे स्वीकृत है । नर्क में भी डाले जाने पर भक्त के हृदय से धन्यवाद ही निकलेगा कि धन्यवाद ! तूने मुझे नर्क दिया । स्वर्ग की आकांक्षा से ही धन्यवाद निकलता हो, तब हमारा चुनाव है । तब हम सुख में तो कहेंगे धन्यवाद और दुख में शिकायत करेंगे ।
.
जिस हृदय में शिकायत उठती है, उसकी प्रार्थना नहीं सुनी जा सकती । उसकी प्रार्थना खुशामद है । उसकी प्रार्थना के पीछे शिकायत छिपी है । ना, वह भक्त नहीं है । उसकी श्रध्दा पूरी नहीं है । वैसे ही आदमी मंदिर में प्रार्थना कर रहा है । उसे वापिस जाना ही होगा । उसे संसार में भटकना होगा । अभी यात्रा अधूरी है । अभी उसे और-और जन्म लेने होंगे । उसे जानना ही होगा की अंगूर खट्टे हैं - अपने अनुभव से - या मीठे हैं । सिर्फ सांत्वना के लिए इस तरह की बातें काम नहीं करेंगी । उसे संसार के अनुभव से गुजरकर परिपक्व होना पडे़गा । जैसे पके फल वृक्षों से गिरते हैं, ऐसा ही पका अनुभव प्रार्थना बनता है; उसके पहले नहीं ।
.
और तीसरा वह प्रेमी भी मंदिर आ रहा है, जिसका जीवन भी वहीं है, जिसकी मृत्यु भी वहीं है । मंदिर ही उसका घर है । वह बाहर भी जाता है, तो मंदिर से बाहर नहीं जा पाता । मंदिर उसके साथ ही चल रहा है । मंदिर उसके जीवन की धारा है; उसकी - श्वास का स्वर है । और कुछ भी हो, जीवन हो या मृत्यु हो, उसने मंदिर को चुना है । वह चुनाव पूरा है । वह छोडे़गा नहीं । वह चुनाव बेशर्त है ।
.
मैंने सुना है, एक सूफी फकीर जुन्नैद को किसी ने कहा कि तू प्रार्थना किए ही चला जाता है, पहले यह पक्का तो कर ले कि परमात्मा है या नहीं ? क्योंकि बहुत लोग संदिग्ध हैं । जुन्नैद ने कहा, 'परमात्मा से क्या मतलब ! मुझे मतलब प्रार्थना से है ।' परमात्मा न भी हो यह पक्का भी हो जाये तो जुन्नैद की प्रार्थना चलेगी । 'मुझे मतलब प्रार्थना से है ।' और जुन्नैद ने कहा, 'मैं तुझसे कहता हूं, अगर मेरी प्रार्थना सही है तो परमात्मा को होना पडे़गा । मैं इसलिए प्रार्थना नहीं कर रहा हूं, कि परमात्मा है । मेरी प्रार्थना जिस दिन सच होगी, उस दिन परमात्मा होगा ।
.
परमात्मा के कारण प्रार्थना नहीं चलती सच्चे भक्त की, प्रार्थना के कारण परमात्मा पैदा होता है । प्रेम, प्रेमपात्र को निर्मित करता है । प्रेम सृजनात्मक है । इस जगत में प्रेम से बड़ी कोई सृजनात्मक शक्ति नहीं है । इसलिए प्रेम मृत्यु को तो स्वीकार कर ही नहीं सकता; वह घटती ही नहीं । अगर तुम प्रेम करते हो किसी को, तो वह मरेगा नहीं; मर नहीं सकता । प्रेमी कभी नहीं मरता । प्रेमी मृत्यु को जानता ही नहीं । प्रेम अमृत है । और सूफी कहते हैं, प्रेम द्वार है । √
.
• ओशो •
बिन बाती बिन तेल
प्रवचन 6 से संकलन ।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें