मंगलवार, 9 जुलाई 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(७३-७६)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*पंच पदारथ मन रतन, पवना माणिक होइ ।*
*आतम हीरा सुरति सौं, मनसा मोती पोइ ॥*
*अजब अनूपम हार है, सांई सरीषा सोइ ।*
*दादू आतम राम गल, जहाँ न देखे कोइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
अंबु१ अवनि२ आकाश तैं, निकस्यों करे सुकाल । 
यूं आतम अस्थूल निकस, सब प्राणहु प्रतिपाल ॥७३॥ 
जैसे जल१ पृथ्वी२ से कूपादि द्वारा और आकाश में स्थिर बादल द्वारा निकलकर सुकाल करता है वैसे ही जीवात्मा स्थूल शरीर के अध्यास से निकल कर ज्ञानोपदेश द्वारा सभी प्राणियों की रक्षा करता है । 
आत्म अन्न तन तृण से निकसे, तब ही होय सु काल । 
ये दोनों तत्त्व माँहिं मरहिं जब, रज्जब प्रत्यक्ष काल ॥७४॥ 
अन्न तृण से निकले और आत्मा देहाध्यास से निकले तभी सुकाल होता है, अन्न और आत्मा दोनों माँहिं मर जये अर्थात अन्न का वृक्ष फल दिये बिना ही हिमपातादि द्वारा नष्ट हो जाय तो प्रत्यक्ष ही दुष्काल होता है वैसे ही देहाध्यास रहते हुये शरीर नष्ट हो जाय तो ब्रह्म प्राप्ति रूप सुकाल न होकर जान्मादि दुख रूप दुष्काल ही होता है । 
शरीर शैल१ अरु समुद्र तल, जीव धातु नग अंग२ । 
काढि कैद३ करि धन पति, नहिं तो दालिद संग ॥७५॥ 
हे प्रिय२ साधको ! जैसे समुद्र तल में नग और पर्वत१ के नीचे सुवर्ण आदि धातु रहती हैं, वैसे ही देहध्यास के नीचे जीव रहता है नग और धातुओं को निकाल कर घर में बंध३ रखने से मनुष्य धन पति होकर सुखी रहता है और नहीं रखने से उसके साथ दरिद्र रहता है, वैसे ही जीवात्मा को देहाध्यास से निकल कर ब्रह्म में रखने से आनन्द रहता है और ब्रह्म में न रखने से दुख ही साथ लगा रहता है । 
व्योम वृक्ष अहरन असम, आतम अग्नि अधार ।
रज्जब पंचनि प्रकटै, तब ही ह्वै उजियार ॥७६॥ 
आकाश, वृक्ष, निहाई, पत्थर और आत्मा ये अग्नि के आश्रय हैं, इन पांचों से अग्नि प्रगट होता है तभी प्रकाश होता है । आकाश में बिजली चमकती है, बांस की शाखाओं से अग्नि प्रकट होता है, अरहन पर हथौड़ा पड़ता है तब अग्नि चमकता है, पत्थर टकराते है तब अग्नि प्रगट होता है इस प्रकार प्रकट होकर अंधेरा दूर करता है, वैसे ही गुरु शब्द सुनने से जीवात्मा से ज्ञानाग्नि प्रकट होता है, उसका प्रकाश भी अज्ञानांधकार को दूर करके ब्रह्मानन्द प्रदान करता है ।
(क्रमशः)

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