मंगलवार, 27 अगस्त 2019

= २१ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सगुणा गुण केते करै, निगुणा नाखै ढाहि ।*
*दादू साधू सब कहैं, निगुणा निष्फल जाइ ॥*
=====================
साभार ~ Shaily Rai

*मैंने सुना है कि अपात्र व्यक्तियों को संन्यास की दीक्षा नहीं दी जाती है। ऐसा क्यों? क्या अपात्र लोग सदगुरु की करुणा के हकदार नहीं हैं?*
🎄🌲🌳🌴🌱🌿☘🍀🎍🎋🍃🍂🍁🍄🌾💐🌷🌹🌺🌸🌼🌻🌞

इस छोटी सी कहानी को समझो:

अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पीया, और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया। ऋषि ने जब दूसरे दिन नए अंगार पर आहुति अर्पित की तो राख ने पुकारा, क्या आज मुझसे रुष्ट हो, महाराज ! ऋषि की करुणा जाग उठी और उन्होंने पात्र को पोंछकर एक आहुति राख को भी अर्पित की। 
.
तीसरे दिन ऋषि जब नए अंगार पर आहुति देने लगे, तो राख ने गुर्राकर कहा, अरे, तू वहाँ क्या कर रहा है, अपनी आहुतियां यहां क्यों नहीं लाता? ऋषि ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ठीक है राख, आज मैं तेरे अपमान का ही पात्र हूं क्योंकि कल मैंने मूर्खतावश तुझ अपात्र में आहुति अर्पित करने का पाप किया था।
.
अपात्र को भी सदगुरु तो देने को तैयार होता है, लेकिन अपात्र लेने को तैयार नहीं। अपात्र का मतलब ही यह होता है कि जो लेने को तैयार नहीं। तो देने से ही थोड़े ही कुछ हल होता है। मैं देने को तैयार हूं अगर तुम लेने को तैयार न हो, तो मेरे देने का क्या सार होगा? 
.
तुम जब तक तैयार नहीं हो, तुम्हें कुछ भी नहीं दिया जा सकता। स्थूल चीजें नहीं दी जा सकतीं, तो सूक्ष्म की तो बात ही छोड़ दो। मैं कोई स्थूल चीज तुम्हें भेंट दूं फूलों का एक हार भेंट दूं और तुम फेंक दो। स्थूल चीज भी नहीं दी जा सकती। तो सूक्ष्म मैं तुम्हें संन्यास दूं? मैं तुम्हें ध्यान दूं? मैं तुम्हें प्रेम दूं तुम उसे भी फेंक दोगे।

अपात्र का अर्थ खयाल रखना। अपात्र का अर्थ यह है, जो लेने को तैयार नहीं। जो पात्र नहीं है अभी। जो अभी पात्र बनने को राजी नहीं है। पात्र का अर्थ होता है, जो खाली है और भरने को तैयार है। अपात्र का अर्थ होता है जो बंद है और भरने से डरा है और खाली ही रहने की जिद्द किए है। फिर अगर अपात्र को दो तो वह फेंकेगा। और अपात्र को अगर दो तो वह दुर्व्यवहार करेगा हीरों के साथ कंकड़ पत्थरों जैसा दुर्व्यवहार करेगा।
.
और क्या अपात्र सदगुरु की करुणा के हकदार नहीं हैं?’
.
हकदार शब्द ही गलत है। यह कोई अधिकार नहीं है जिसका तुम दावा करो। यह हकदार शब्द ही अपात्र के मन की दशा की सूचना दे रहा है। संन्यास का कोई हकदार नहीं होता। यह कोई कानूनी हक नहीं है कि इक्कीस साल के हो गए तो वोट देने का हक है। तुम जन्मों जन्मों जी लिए हो, फिर भी हो सकता है संन्यास के हकदार न होओ। 
.
यह हक अर्जित करना पड़ता है। यह हक हक कम है और कर्तव्य ज्यादा है। यह तो तुम्हें धीरे धीरे कमाना पड़ता है। यह कोई कानूनी नहीं है कि मैं चाहता हूं संन्यास लेना, तो मुझे संन्यास दिया जाए। यह तो प्रसादरूप मिलता है। तुम प्रार्थना कर सकते हो, हक का दावा नहीं। 
.
तुम प्रार्थना कर सकते हो, हाथ जोड़कर तुम चरणों मैं बैठ सकते हो कि मैं तैयार हूं, जब आपकी करुणा मुझ पर बरसे, या आप समझें कि मैं योग्य हूं, तो मुझे भूल मत जाना, मैं अपना पात्र लिए यहां बैठा हूं। तुम प्रार्थना कर सकते हो, हक की बातें नहीं कर सकते। हक की बात भी अपात्रता का हिस्सा है।
.
एस धम्मो सनंतनो ~ ओशो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें