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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२५ - हितोपदेश । चटताल
जियरा मेरे सुमिर सार,
काम क्रोध मद तज विकार ॥टेक॥
तूँ जनि भूलै मन गंवार,
शिर भार न लीजै मान हार ॥१॥
सुन समझायो बार बार,
अजहूं न चेतै, हो हुसियार ॥२॥
कर तैसें भव तिरिये पार,
दादू अबतैं यही विचार ॥३॥
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मन को कल्याणप्रद उपदेश कर रहे हैं - हे मेरे मन ! काम, क्रोध, मदादि विकारों को त्याग कर विश्व के सार परब्रह्म का स्मरण कर ।
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मूर्ख मन ! तू प्रभु को मत भूल, स्मरण करने में हार मान कर अपने शिर पर पापों का भार मत ले ।
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अरे कुछ सुन तो सही, मैंने तुझे बारँबार समझाया है, फिर भी तू अभी तक सचेत नहीं हो रहा है ।
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शीघ्र सावधान होकर, अभी से ऐसे विचार और ऐसे कार्य कर, जिनसे सँसार - समुद्र से पार हो सके ।
(क्रमशः)
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