गुरुवार, 22 अगस्त 2019

= सुन्दर पदावली(२४. राग काफी - १३) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*सहज सुंन्नि का षेला अभि अन्तरि मेला ।* 
*अबिगति नाथ निरंजना तहां आपै आप अकेला ॥(टेक)* 
*यह मन तहां बिलमाइये गहि ज्ञान गुरु का चेला ।* 
*काल करम लागै नहीं तहां रहिये सदा सुहेला ॥१॥* 
*परम जोति जहां जगमगै अरु शब्द अनाहद मेला ।* 
*संत सकल पहुंचै तहां जन सुन्दर वाही गैला ॥२॥* 
यह सहज साधना ‘शून्य से प्रेम’ का खेल है । यह अन्त:करण के मेल से ही सम्पन्न हो सकती है । वहाँ उपास्य के रूप में वह अज्ञेय निरञ्जन निराकार ब्रह्म ही एकान्ततः ग्राह्य है ॥टेक॥ 
शिष्य को अपना चित्त गुरुपदेश द्वारा प्राप्त ज्ञान में लगाना चाहिये । उसका परिणाम यह होगा कि ऐसे साधक को उसके कर्मफल एवं मृत्यु का कोई भय न रहेगा । वह सदा सुखी भी रहेगा ॥१॥ 
ऐसे साधक के चारों ओर परम ज्योति परमेश्वर का अनुपम प्रकाश जगमगाता रहेगा, तथा अनाहत नाद भी सुनायी देता रहेगा । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – सभी उत्तम साधक सन्त भी इसी उपाय से साधना करते हुए वहाँ तक पहुँच सके हैं । अतः यही उत्तम एवं सुखद मार्ग है ॥२॥
(क्रमशः)

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