शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

= १३ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*करणहार कर्त्ता पुरुष, हमको कैसी चिंत ।*
*सब काहू की करत है, सो दादू का दादू मिंत ॥* 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

प्रयास से सब लोग दुखी हैं !' सुना कभी किसी शास्त्र को यह कहते? 'प्रयास से सब लोग दुखी हैं, इसको कोई नहीं जानता ! इसी उपदेश से भाग्यवान निर्वाण को प्राप्त होते हैं।' चेष्टा के कारण सब दुखी हैं। इसलिए चेष्टा से कभी सुखी न हो सकेंगे। चेष्टा यानी अहंकार। चेष्टा यानी यह दावा कि मैं करके दिखा दूंगा, धन कमा लूंगा, पद कमा लूंगा, समाधि लगा लूंगा, परमात्मा को भी मुट्ठी में ले कर दिखा दूंगा ! चेष्टा यानी अहंकार की घोषणा कि मैं कर्ता हूं !
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आयासत्सकलो दुःखी नैनं जानाति कश्चन।
आयास से, प्रयास से, चेष्टा से दुख पैदा हो रहा है—इसे शायद ही कोई विरला जानता हो। जो जान लेता है वह धन्यभागी है।
अनेनैवोपदेशेन धन्य:।
जो ऐसा जान ले, इस उपदेश को पहचान ले, वह धन्यभागी है, वह भाग्यशाली है। क्योंकि निर्वाण उसका है। फिर उसे कोई निर्वाण से रोक नहीं सकता।
इसका अर्थ समझें। निर्वाण का अर्थ है, सहज समाधि। निर्वाण का अर्थ है : जो समाधि अपने से लग जाये, लगाने से नहीं; जो प्रसाद—रूप मिले, प्रयास—रूप नहीं। 
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जो भी कमा लाओगे वह छोटा होगा। कृत्य कर्ता से बड़ा नहीं हो सकता। अगर कविता लिखी तो लिखने वाले से छोटी होगी; कविता कवि से बड़ी नहीं हो सकती। और अगर चित्र बनाया है तो छोटा होगा; चित्र चित्रकार से बड़ा नहीं हो सकता। अगर नाचे तो नृत्य नर्तक की सीमा से छोटा होगा, क्योंकि नृत्य नर्तक से बड़ा नहीं हो सकता। तो समाधि भी इसी मनुष्य की ही समाधि होगी, विराट नहीं हो सकती। क्षुद्र हैं, तो समाधि और भी ज्यादा क्षुद्र होगी। विराट को बुलाना हो तो चेष्टा से नहीं, समर्पण से, प्रयास से नहीं, सब उसके, अनंत के चरणों में छोड़ देने से।
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सांख्य का मार्ग संकल्प का मार्ग नहीं है। इसलिए महावीर, पतंजलि को जो लोग जानते हैं, वे सांख्य को न समझ पायेंगे। सांख्य का मार्ग है समर्पण का- कर्ता न रहै तो परमात्मा अभी कर दे। कर्ता जरा हटे तो परमात्मा अभी कर दे। बीच—बीच में न आएं तो अभी हो जाये। आने से बाधा पड़ रही है।
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चेष्टा तनाव से भर देती है, अशांत कर देती है। स्वीकार कर लें; जो है, उसे वैसा ही स्वीकार कर लें। समस्त के साथ संघर्ष न करें, बहने लगें इस धार में। और नदी जहां ले जाये, वहीं चल पड़ें। नदी से विपरीत उल्टे जाने की चेष्टा न करें। उसी उल्टे जाने में अशांति पैदा होती है। उसी लड़ने में हारते, पराजित होते, विषाद उत्पन्न होता है और चित्त में संताप घिरता है।
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'प्रयास से सब लोग दुखी हैं, इसको कोई नहीं जानता। इसी उपदेश से भाग्यवान निर्वाण को प्राप्त होते हैं।’
प्रयासात् सकला दुःखी।
सब दुखी हैं प्रयास के कारण। यह बड़ी अनूठी बात है। सभी सोचते हैं, हम प्रयास पूरा नहीं कर रहे हैं, इसलिए दुखी हैं; चेष्टा पूरी नहीं हो रही, नहीं तो सफल हो जाते। जो पूरी चेष्टा करते हैं, वे सफल हो जाते हैं। जो दौड़ते हैं, वे पहुंच जाते हैं।
सूत्र है प्रयासात सकला दुःखी। सब दुखी हैं प्रयास के कारण। दौड़े कि भटके। रुक जाएं तो पहुंच जाएं।
एनं कश्चन न जानाति।
इस महत्वपूर्ण सूत्र को कोई भी जानता हुआ नहीं मालूम पड़ता।
अनेन एव उपदेशेन धन्य निवृत्तिम्।
और इसे जान ले, वह धन्यभागी है। वह निवृत्त हो गया। उसे प्राप्ति हो जाती है।
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मलूकदास का वचन सुना होगा.....
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गये सबके दाता राम।।
ये पूरी व्याख्या है इस सूत्र की। यह महासूत्र है। प्रभु सब कर रहा है। उसे करने दें, बाधा न दें। परमात्मा चल ही रहा है, अलग चलने से कुछ भी होने वाला नहीं। यह धारा बही जा रही है। इसके साथ लीन हो जाएं।
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इसके आगे का सूत्र और भी घबड़ाहट पैदा करने वाला है—
'जो आंख के ढंकने और खोलने के व्यापार से दुखी होता है, उस आलसी शिरोमणि का ही सुख है, दूसरे किसी का नहीं।’
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गये सबके दाता राम।।
जो आंख के पलक झपकने में भी सोचता है कौन पंचायत करे; जो इतना कर्ता— भाव भी नहीं लेता है कि अपनी आंख भी झपकूं वह भी परमात्मा पर ही छोड़ देता है कि तेरी मर्जी तो खोल, तेरी मर्जी तो न खोल, जो अपना सारा कर्तृत्व— भाव समर्पित कर देता है..।
व्यापारेखिद्यते यस्तु निमेषोत्मेषयोरपि।
तस्य आलस्य धुरीणस्य सुखं...।।
उसका ही सुख है—उस धुरीण का, जो आलस्य में आत्यंतिक है।
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अभी पश्चिम में एक किताब छपी है। उस किताब के लिखने वाले को सांख्य का कोई पता नहीं, अन्यथा वह बड़ा प्रसन्न होता। लेकिन किताब जिसने लिखी है, अनुभव से लिखी है। किताब का नाम है. 'ए लेजी मैन्स गाइड टू एनलाइटेनमेन्ट।’ आलसियों के लिए मार्गदर्शिका निर्वाण की ! उसे कुछ पता नहीं है सांख्य का, लेकिन उसकी अनुभूति भी करीब—करीब वही है।
जो आंख ढंकने और खोलने के व्यापार में भी पंचायत अनुभव करता है कि कौन करे, मैं हूं कौन करने वाला !
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और जरा गौर करें, कौन आंख झपकाता है? यह किसका कृत्य है? आंख अपने से झपक रही है। अगर झपकनी और खोलनी पड़े, बुरी तरह थक जाएं, दिन भर में थक जाएं, करोड़ों बार झपकती है। यह तो अपने से हो रहा है। एक मक्खी आंख की तरफ भागी आती है तो झपकते थोड़े ही हैं, झपक जाती है। क्योंकि अगर झपके तो देर लग जाये, उतनी देर में तो मक्खी टकरा जाये। इसको तो वैज्ञानिक कहता है रिफ्लैक्स है। यह अपने से हो रहा है। वैज्ञानिक इसको रिफ्लैक्स कहता है। यह अपने से हो रहा है। यह कर नहीं रहे हैं। धार्मिक इसको कहता है प्रभु कर रहे हैं।
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श्वास ले थोड़े ही रहे हैं, चल रही है। इसलिए तो सो जाते हैं, तब भी चलती रहती है, नहीं तो किसी दिन भूल गये नींद में तो बस.. सुबह फिर न उठे। यह किसी पर छोड़ा ही नहीं है। बेहोश भी पड़े रहें तो भी श्वास चलती रहती है, प्रभु लेता रहता है।

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