सोमवार, 9 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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राग जँगली गौड़ी
४१ - पहरा (पँजाबी भाषा) । कहरवा ताल
पहले पहरे रैणि१ दे, बणिजारिया, 
तूँ आया इहिं सँसार वे ।
मायादा२ रस पीवण लग्गा, 
विसरा सिरजनहार वे ॥
सिरजनहार विसारा, किया पसारा, 
मात पिता कुल नार३ वे ।
झूठी माया, आप बंधाया, 
चेते नहीं गंवार वे ॥
गंवार न चेते, अवगुण केते, 
बँध्या सब परिवार वे ।
दादू दास कहै बणिजारा, 
तूँ आया इहिं सँसार वे ॥१॥
जीव को उपदेश कर रहे हैं - हे जीव रूप बनजारे ! तू इस सँसार में आया है और आयु रूप रात्रि१ के प्रथम पहर में है, किन्तु अभी से सृकर्ता ईश्वर को भूलकर माया२ के विषय - रस को पान करने लगा है । प्रभु को भूलकर माता - पिता और कुटुम्बियों के साथ३ बहुत फैलाव फैला लिया है । तू मिथ्या माया में स्वयँ ही बंध गया है । हे मूर्ख ! सावधान नहीं होता । मूर्ख ! तू सचेत नहीं होता । देख, तूने कितने अवगुण किये हैं । अपने दोषों के कारण ही तू सब परिवार में बंधा हुआ है । हम तुझे कह रहे हैं, तू इस मायिक सँसार में आया है, सचेत रहना ॥१॥
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दूजे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, 
तू रत्ता तरुणी नाल४ वे ।
माया मोह फिरे मतवाला, 
राम न सक्या संभाल वे ॥
राम न संगाले, रत्ता नाले, 
अँध न सूझे काल वे ।
हरि नहिं ध्याया, जन्म गमाया, 
दह दिशि फूटा ताल वे ॥
दह दिशि फूटा, नीर निखूटा, 
लेखा डेवण५ साल वे ।
दादू दास कहै बणिजारा, 
तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ॥२॥
हे जीव - बनजारे ! तू आयु - रात्रि के दूसरे पहर में आया है और आते ही तरुण नारी के साथ४ अनुरक्त हो गया है । मायिक मोह से मतवाला होकर विचर रहा है । राम का स्मरण नहीं कर सका । तू राम का स्मरण नहीं करता, तरुणी के साथ ही प्रेम करता है । अरे अँध ! तुझे काल भी नहीं दीखता । तूने हरि की उपासना नहीं की, व्यर्थ ही जन्म खो दिया । तेरा सँयम - सरोवर छूट कर बल रूप जल दश इन्द्रिय रूप दश दिशाओं में फैल गया है । इस प्रकार लोलूपता से बल रूप जल समाप्त हो चुका है । अब तुझे अपने जीवन का हिसाब देने५ में बड़ा कष्ट होगा । हम तुझे कह रहे हैं - तू युवती में अनुरक्त होकर अपना सर्वस्व खो बैठा है ॥२॥
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तीजे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, 
तैं बहुत उठाया भार वे ।
जो मन भावा, सो कर आया, 
ना कुछ किया विचार वे ॥
विचार न कीया, नाम न लीया, 
क्यों कर लँघे पार वे ।
पार न पावे, फिर पछतावे, 
डूबण लग्गा धार वे ॥
डूबण लग्गा, भेरा६ भग्गा७, 
हाथ न आया सार वे ।
दादू दास कहै बणिजारा, 
तैं बहुत उठाया भार वे ॥३॥
हे जीव - बनजारे ! आयु रात्रि के तीसरे पहर में तूने ममता रूप बहुत भार उठा लिया है । जो मन को प्रिय लगा, वही तूने किया है । भले - बुरे का कुछ भी विचार नहीं किया । न परमात्मा का नाम चिन्तन किया और न आत्म - विचार ही किया । तू सँसार - सिन्धु को उल्लँघन करके पार कैसे जा सकेगा ? जब पार न जा सकेगा और डूबने लगेगा तब पश्चात्ताप ही करेगा । अब तू डूबने ही लगा है, तेरा धैर्य रूप बेड़ा६ टूट गया७ है और तत्व विचार भी तेरे हाथ न लगा । हम तुझे कह रहे हैं - कि तूने ममता रूप भार तो बहुत उठाया है, किन्तु जीवन को सफल नहीं कर सका ॥३॥
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चौथा पहरे रैणि दे, बणिजारिया, 
तू पक्का८ हूवा पीर९ वे ।
जौबन गया, जरा वियापी१०, 
नाँहीं सुधि शरीर वे ॥
सुधि ना पाई, रैणि गँवाई, 
नैनों आया नीर वे ।
भव जल भेरा डूबण लग्गा, 
कोई न बँधे धीर वे ॥
कोई धीर न बँधे, जम के फँधे, 
क्यों कर लँघे तीर वे ।
दादू दास कहै बणिजारा, 
तू पक्का हूवा पीर वे ॥४॥
जीव - बनजारे ! अब तू आयु रात्रि के चतुर्थ पहर में आया है और साँसारिक परिस्थितियों का अनुभवी८ तथा वृद्ध९ हो गया है । तेरे शरीर का यौवन चला गया है और देह में वृद्धावस्था११ आगई१० है, अब तुझे शरीर की सुधि भी नहीं रहती । प्रभु - प्राप्ति की हेतु शुद्ध बुद्धि भी तुझे प्राप्त न हो सकी । तूने आयु - रात्रि व्यर्थ ही खो दी । अब तेरे नेत्रों में दु:ख के अश्रु आ रहे हैं । तेरा जीवन - बेड़ा सँसार - सिन्धु के क्लेश - जल में डूब रहा है । जिनके लिए तूने अनर्थ किये, उन कुटुम्बियों में से कोई भी धैर्य नहीं बंधाता । यम के फँदे में पड़ने पर कौन धैर्य बंधा सकता है ? अब तू सँसार - सिन्धु को लाँघकर अगले तट पर कैसे जायगा ? हम तुझे कहते हैं - अब तू साँसारिक परिस्थितियों का अनुभवी और वृद्ध तो हो गया, किन्तु खेद है - भगवत् का साक्षात्कार न कर सका ॥४॥
(क्रमशः)

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