रविवार, 15 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*दादू कहै राम बिना मन रंक है, जाचै तीनों लोक ।*
*जब मन लागा राम सौं, तब भागे दालिद्र दोष ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ##भाग १ ##आशा तृष्णा*
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तृष्णा अन्त न आत है, सत जाने मतिमान ।
सिद्ध खोपड़ा सिकन्दर, भर न सका हैरान ॥५८॥
एक बार सिकन्दर बादशाह को एक सिद्ध योगी मिले । सिकन्दर ने उनकी बड़ी सेवा की । 
योगी प्रसन्न होकर बोला - "बेटा सिकन्दर ! कुछ मांग ? 
सिकन्दर हाथ जोड़ कर बोला - "यदि आप प्रसन्न है तो यह वर दें - मैं सात द्वीपों और नवों खण्डों का बादशाह हो जाऊं ।" 
योगी -- "अरे ! इसे क्या मांगता है ? क्या तुझे संसार मे सदा जीना है ? अपनी मुक्ति क्यों नही मांगता ।" 
किन्तु फिर भी सिकन्दर ने वही मांगा । 
योगी बोला - "अच्छा तुम मेरे इस खप्पर को अन्न से भर दो तो तुम तीनों लोकों के स्वामी बन सकते हो ।" 
सिकन्दर न भर सका, हैरान हो योगी के चरणों मे गिर पड़ा । 
योगी बोला - "इस खप्पर के समान ही मनुष्य का मन है । मन की तृष्णा, प्राप्ति से कभी नही भरती, यह बढती ही जाती है । देखो तुम्हें इतना राज्य प्राप्त है किन्तु संतोष नहीं ।" सिकन्दर चुप हो गया ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्य राम सा ###

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