मंगलवार, 17 सितंबर 2019

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*विष सुख माँहैं रम रहे, माया हित चित लाइ ।*
*सोई संतजन ऊबरे, स्वाद छाड़ि गुण गाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal​
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ##भाग २ ##शम*
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इन्द्रियवश हित उसी क्षण, करत यत्न मतिमान ।
अंगुलीकाट चख जय किया, सर्जन दमी सुजान ॥२२६॥
यूरोप में एक सर्जर नामक लडका था । प्रथम तो वह गरीब घर का था किन्तु बुद्धिमान होने से आगे चलकर कमाण्डर बन गया था। फिर जब विवाह की इच्छा हुई तब वह जिसे चाहता था, वह युवती प्रथम ही अन्य पुरुष से दूषित निकली । इससे उसे वैराग्य हो गया । वह नौकरी छोड़कर साधना में लग गया ।
उसके सौन्दर्य को देखकर, एक धनी की लड़की ने अर्धरात्रि में उसके द्वार पर आकर द्वार खोलने का अति आग्रह किया । प्रथम बहुत नटने(मना करना) पर भी अन्त में दया आ गई । उसने बड़े हाल का द्वार खोलकर, तत्काल कोठरी में घुसकर द्वार बंद कर लिया ।
युवती ने कहा - "मैं ठण्ड से व्याकुल हूँ मुझे वस्त्र दो और चाय पिलाओ ।"
सर्जर - "वस्त्र भी कमरे में पड़े हैं तथा चाय आदि भी सब हैं, तुम बनाओ और पी लो ।"
इतने पर भी युवती ने द्वार खोलकर हॉल में, आने का अति आग्रह किया । तब उसने चाकू से अपनी अँगुली के अग्र भाग में चीरा लगाया । फिर उससे टपकते रक्त को देखता हुआ बाहर आया ।
युवती ने पुछा - "यह क्या ? अँगुली कैसे कट गई ?"
सर्जर "मेरे नेत्र तुम्हारे रूप को देखकर आसक्त न हों इसलिये मैनें स्वयं ही अंगुली काट ली है" यह सुन कर युवती का मन सहसा बदल गया । वह ये सोचकर कि - अपनी कामवासना बुझाने के लिये ऐसे विरक्त का पतन करना योग्य नहीं, वहां से उसी क्षण चली गई ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्य राम सा ###

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