#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
.
*निर्मल ज्ञान ध्यान पुनि निर्मल*
*निर्मल दृष्टि उघारी ।*
*निर्मल नांव जपत निसबासर*
*निर्मल गति मति सारी ॥२॥*
*अपना आप करत नहिं परगट*
*ऐसैं बडे बिचारी ।*
*सुन्दरदास रहैं क्यों छाने*
*जिनकै घट उजियारी ॥३॥*
आप का नामस्मरण निर्मल तथा दृष्टि भी निर्दोष है । साथ ही आपकी गति एवं मति तो निर्मल है ही ॥२॥
आप अपनी वास्तविकता प्रकट नहीं होने देते, ऐसे आप गम्भीर विचारवान् हैं । परन्तु श्रीसुन्दरदासजी महाराज कहते हैं – आप उनसे गुप्त नहीं रह सकते जिनके हृदय में ज्ञान का प्रकाश हो चुका है ॥३॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें