सोमवार, 16 सितंबर 2019

= सुन्दर पदावली(२७. राग धनाश्री - ४/२) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*निर्मल ज्ञान ध्यान पुनि निर्मल*
*निर्मल दृष्टि उघारी ।* 
*निर्मल नांव जपत निसबासर*
*निर्मल गति मति सारी ॥२॥* 
*अपना आप करत नहिं परगट*
*ऐसैं बडे बिचारी ।* 
*सुन्दरदास रहैं क्यों छाने*
*जिनकै घट उजियारी ॥३॥* 
आप का नामस्मरण निर्मल तथा दृष्टि भी निर्दोष है । साथ ही आपकी गति एवं मति तो निर्मल है ही ॥२॥ 
आप अपनी वास्तविकता प्रकट नहीं होने देते, ऐसे आप गम्भीर विचारवान् हैं । परन्तु श्रीसुन्दरदासजी महाराज कहते हैं – आप उनसे गुप्त नहीं रह सकते जिनके हृदय में ज्ञान का प्रकाश हो चुका है ॥३॥
(क्रमशः)

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