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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू झूठा साचा कर लिया, विष अमृत जाना ।*
*दुख को सुख सब को कहै, ऐसा जगत दिवाना ॥*
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साभार ~ Bhageshwar Vashishtha
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आखिर अंतर रह ही गया
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बचपन में जब हम रेल की सवारी करते थे, माँ घर से खाना बनाकर ले जाती थी । पर रेल में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए । पापा ने समझाया ये हमारे बस का नहीँ ।अमीर लोग इस तरह पैसे खर्च कर सकते हैं, हम नहीँ । बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैं "स्वास्थ सचेतन के लिए"।
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आखिर अंतर रह ही गया
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बचपन मेंं जब हम सूती कपड़ा पहनते थे, तब वो लोग टेरीलीन पहनते थे । बड़ा मन करता था पर पापा कहते हम इतना खर्च नहीँ कर सकते । बड़े होकर जब हम टेरीलीन पहने लगे तब वो लोग सूती के कपड़े पहनने लगे ।सूती कपड़े महंगे हो गए । हम अब उतने खर्च नहीँ कर सकते ।
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आखिर अंतर रह ही गया
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बचपन मेंं जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनों के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते । बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू हिस्सा ढक लेते । बड़े होकर देखा वो लोग घुटनों के पास फटे पतलून महंगे दामों मेंं बड़े दुकानों से खरीदकर पहन रहे हैं ।
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आखिर अंतर रह ही गया
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बचपन मेंं हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते, तब वे स्कूटर पर जाते । जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जब तक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे । और हमने जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर BMW खरीदी अंतर को मिटाने के लिए तो वो साईकिलिंग करते नज़र आये स्वास्थ्य के लिए।
आख़िर अंतर रह ही गया
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