🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
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रोम न टूटा नट्ट१ का, करि दिखालाये खण्ड ।
यूं मिथ्या रामति२ राम सत्य, ब्रह्म रचे ब्रह्माण्ड ॥१८५॥
नट१ अपने टुकड़े टुकड़े करके देता है किन्तु उसका एक रोम भी नहीं टूटता इसी प्रकार ब्रह्म ने ब्रह्माण्ड रचे हैं, राम की सृष्टि रूप क्रीड़ा२ मिथ्या है और राम सत्य है ।
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चतुर्खानि बाजी चिहर१, सकल पसारा झूठ ।
रज्जब ज्यों थी त्यों कही, रजू२ होहु भावे रूठ३ ॥१८६॥
जरायुज, अण्डज, स्वेदज, उदभिज, इन चार खानि रूप संसार बाजी की चहल१-पहल का विस्तार मिथ्या है, यह बात जैसे थी वैसी ही मैंने कही है, अब चाहे इससे कोई प्रसन्न२ हो वा रुष्ठ३ हो ।
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चावल किये धूलि के, पंख परेवा१ कीन्ह२ ।
झूठ दिखाया साच करि, विरले पुरुषाँ चीन्ह३ ॥१८७॥
जैसे बाजीगर धूलि के चावल और पंख का कबूतर१ बना२ कर मिथ्या होने पर भी सत्य - सा दिखा देता है, वैसे ही ईश्वर ने मिथ्या संसार रच कर सत्य-सा दिखा दिया है, इस बात को विरले ज्ञानी संत पुरुषों ने ही पहचाना३ है ।
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स्वप्ना को साचा नहीं, नहीं मृछन२ मधि नीर ।
शीतकोट१ कोट हु नहीं, त्यों वसुधा३ सब वीर ॥१८८॥
स्वप्न कोई सत्य नहीं होता, मृगतृष्णा२ में जल नहीं होता, गंधर्व१ नगर रूप किला नहीं होता, हे भाई! वैसे ही पृथ्वी३ पर स्थिर संसार सत्य नहीं है ।
(क्रमशः)
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*सोवत सुपिना होई, जागे थैं नहिं कोई ॥*
*मृगतृष्णा जल जैसा, चेत देख जग ऐसा ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३९)*===============
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
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रोम न टूटा नट्ट१ का, करि दिखालाये खण्ड ।
यूं मिथ्या रामति२ राम सत्य, ब्रह्म रचे ब्रह्माण्ड ॥१८५॥
नट१ अपने टुकड़े टुकड़े करके देता है किन्तु उसका एक रोम भी नहीं टूटता इसी प्रकार ब्रह्म ने ब्रह्माण्ड रचे हैं, राम की सृष्टि रूप क्रीड़ा२ मिथ्या है और राम सत्य है ।
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चतुर्खानि बाजी चिहर१, सकल पसारा झूठ ।
रज्जब ज्यों थी त्यों कही, रजू२ होहु भावे रूठ३ ॥१८६॥
जरायुज, अण्डज, स्वेदज, उदभिज, इन चार खानि रूप संसार बाजी की चहल१-पहल का विस्तार मिथ्या है, यह बात जैसे थी वैसी ही मैंने कही है, अब चाहे इससे कोई प्रसन्न२ हो वा रुष्ठ३ हो ।
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चावल किये धूलि के, पंख परेवा१ कीन्ह२ ।
झूठ दिखाया साच करि, विरले पुरुषाँ चीन्ह३ ॥१८७॥
जैसे बाजीगर धूलि के चावल और पंख का कबूतर१ बना२ कर मिथ्या होने पर भी सत्य - सा दिखा देता है, वैसे ही ईश्वर ने मिथ्या संसार रच कर सत्य-सा दिखा दिया है, इस बात को विरले ज्ञानी संत पुरुषों ने ही पहचाना३ है ।
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स्वप्ना को साचा नहीं, नहीं मृछन२ मधि नीर ।
शीतकोट१ कोट हु नहीं, त्यों वसुधा३ सब वीर ॥१८८॥
स्वप्न कोई सत्य नहीं होता, मृगतृष्णा२ में जल नहीं होता, गंधर्व१ नगर रूप किला नहीं होता, हे भाई! वैसे ही पृथ्वी३ पर स्थिर संसार सत्य नहीं है ।
(क्रमशः)
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