बुधवार, 18 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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५० - तत्व - उपदेश । राजमृगाँक ताल
तूँ है तूँ है तूँ है तेरा, मैं नहिं मैं नहिं मैं नहिं मेरा ॥टेक॥
तूँ है तेरा जगत उपाया, मैं मैं मेरा धँधै लाया ॥१॥
तूँ है तेरा खेल पसारा, मैं मैं मेरा कहै गंवारा ॥२॥
तूँ है तेरा सब सँसारा, मैं मैं मेरा तिन शिर भारा ॥३॥
तूँ है तेरा काल न खाइ, मैं मैं मेरा मर मर जाइ ॥४॥
तूँ है तेरा रह्या समाइ, मैं मैं मेरा गया विलाइ ॥५॥
तूँ है तेरा तुमहीं माँहिं, मैं मैं मेरा मैं कुछ नाँहिं ॥६॥
तूँ है तेरा तूँ ही होइ, मैं मैं मेरा मिल्या न कोइ ॥७॥
तूँ है तेरा लँघै पार, दादू पाया ज्ञान विचार ॥८॥
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तत्व का उपदेश कर रहे हैं - 
सँत मन, वचन, कर्म से कहते हैं - हे परमेश्वर ! आप ही सत्य हैं और सब कुछ आपका ही है । प्राणियों का कायिक, वाचिक, मानसिक "मैं" तथा मेरा रूप अहँकार सत्य नहीं है । 
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आप ही समर्थ हैं, आपका ही उत्पन्न किया हुआ यह जगत् है । "मैं युवा हूं, मैं बली हूं, शरीर मेरा है" इस प्रकार अहँकार करने वालों को आपने सँसार के धँधों में लगा रक्खा है । 
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आप ही अद्भुत रचना में निपुण हैं । आपका ही यह सँसार - खेल फैलाया हुआ है । मैं रचना में निपुण हूं, मैं और मेरा कार्य अद्भुत है । यह धन मेरा है, ऐसा अज्ञानी लोग ही कहते हैं । 
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आप सदा स्थायी हैं, सब सँसार आपका ही है । "मैं स्थायी रहूंगा, मैं महान् हूं, यह ऐश्वर्य मेरा है ।" ऐसा कहने वालों के शिर पर पाप - भार ही पड़ता है । 
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आप नित्य हैं और जो आपका भक्त है, उसे भी काल नहीं खाता । "मैं चिरजीवी हूं, अजय हूं, यह दूर्ग मेरा है ।" ऐसा अहँकार करने वाले मर - मर कर चौरासी में जाते हैं । 
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आप ही अखँड हैं, आपका ज्ञानी भक्त भी आप में ही समाकर रहता है । "मैं गुणी हूं, मैं धनी हूं, यह मेरा परिवार है ।" ऐसा कहने वाले मिट्टी में मिल गये । आप ही शुद्ध हैं, आपका ज्ञानी भक्त भी आप में ही संलग्न रहता है । 
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"मैं राजा हूं, मैं वीर हूं, मेरा देश है ।" ऐसा कहने वालों का कुछ भी नहीं होता । आप ही व्यापक हैं, आपका ज्ञानी भक्त भी आपका ही रूप हो जाता है । 
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"मैं कुलवान् हूं, मैं विद्वान हूं, यह सब पसारा मेरा है ।" ऐसा अहँकार करने वाला, आप में कोई भी न मिल सका ।
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आप माया से परे हैं और आपका ज्ञानी भक्त भी मायिक मोह को लाँघ कर, सँसार के पार जाकर आप ही में लय होता है । विचारादि साधन द्वारा हमने यह यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया है ।
(क्रमशः)

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