बुधवार, 18 सितंबर 2019

= *काल का अंग ८४(५/८)* =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*काल कीट तन काठ को, जरा जन्म को खाइ ।*
*दादू दिन दिन जीव की, आयु घटंती जाइ ॥*
==================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
.
*काल का अंग ८४*
रज्जब रहै न कोय, सब को मरना है सही५ । 
काल कवल१ जग जोय, भूख२ भख३ मेल्है४ नहीं ॥५॥ 
सबको मरना है, कोई भी जीवित नहीं रहेगा यह सत्य५ है । देख काल का ग्रास१ है, काल२ अपने भक्ष्य३ को नहीं छोड़े गा४ । 
रज्जब कोल्हू काल के, सब तनु तिली समान । 
सो उबरे१ कहि कौन विधि, जो आये विच घान ॥६॥ 
काल कोल्हू के समान है, सब शरीर तिलों के समान है, जो कोल्हू के घान में आ गये है वे तिल कहो किस प्रकार बच१ सकते हैं ? वैसे ही काल से कोई नहीं बचता । 
निशि दिन जामण मरण में, चंद सूर आकाश । 
त्यों जीव सहित सब सानि१ कर, काल करै इक ग्रास ॥७॥ 
जैसे आकाश में रात्रि -दिन में चंद सूर्य का उदय अस्त रूप जन्म-मरण होता है, वैसे ही काल जीव के सहित सबको मिलाकर१ एक ही ग्रास कर जायगा अर्थात प्रलय काल में एक साथ ही नष्ट कर देता है । 
जैसे शशि के सकल दिशि, मंडल मँडै अकाश । 
त्यों रज्जब सहसी नहीं, पिंड प्राण१ के पास ॥८॥ 
जैसे आकाश में चन्द्रमा के सब ओर मंडल मँडता है, वह नहीं रहता, वैसे ही प्राणी१ के पास शरीर नहीं रहेगा । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें