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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सतगुरु संतों की यह रीत,*
*आत्म भाव सौं राखैं प्रीत ।*
*ना को बैरी ना को मीत,*
*दादू राम मिलन की चीत ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ### दया # भाग २
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सहें दयालू दयावश, अपना अति अपमानस ।
माधवीकांणी ने सहा, बचा गर्भ के प्राण ॥१४६॥
संत दादूजी के प्रेमी टोंक ग्राम निवासी वैष्णव माधवदासजी काणी के पास एक गर्भवती विधवा स्त्री आकर रोने लगी ।
उनसे पूछा- बहिन रोती क्यों हो, क्या बात है ?
नारी- मेरे पेट में गर्भ है, मुझसे प्रमाद तो गया किन्तु अब मैं गर्भ को गिराना चाहती हूँ जिससे मेरी इज्जत रह जाय ।
दयालू संत बोले- बहिन, ऐसा कभी मत करना, गर्भ गिराना महापाप है । तुम इसकी रक्षा करो । इस कार्य मे मैं तुम्हारी सहायता करूँगा ।
नारी- जिस पुरुष का गर्भ रहा है वह तो स्वीकार करेगा नमैं, फिर मैं किसका नाम लेकर गर्भ की रक्षा करूँ ।
संत- यदि ऐसा है तो तुम मेरा नाम ले सकती हो किन्तु गर्भ की पूर्णता रक्षा करो ।
नारी ने वैसा ही किया । उसके दण्ड रूप में माधव काणी का मुख काला करके तथा उन्हे गधे पर चढा के ग्राम में फिराया । इत्यादि से भारी अपमान सहा, किन्तु गर्भ का नाश नहीं होने दिया । अन्त में यथार्थता भी छिपी न रही ।
बात प्रकट होने पर सबने संत से क्षमा मांगते हुए उनकी भारी प्रशंसा की ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
######## सत्य राम सा
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