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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू हीरा पग सौं ठेलि कर, कंकर को कर लीन्ह ।*
*पारब्रह्म को छाड़ कर, जीवन सौं हित कीन्ह ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु भाग १ ## मन*
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ठगे जात है संत भी, चंचल मन के हाथ ।
संत भरतरी भी डिगे, धरा पीक पर हाथ ॥२४॥
एक समय संत भर्तृहरि एक नगर के पक्के मार्ग चल रहे थे, रात चांदनी थी । मार्ग में किसी ने पान का पीक थूका था । उसमें चन्द्रमा के प्रकाश से मणि की सी भ्रांति हुई । उसे मणि जान कर लोभ हुआ किन्तु वे सोचने लगे मणि है पर अपने किस काम की । फिर विचार हुआ किसी गरीब को दे देंगे । हाथ उठाने लगे, हाथ पीक से भर गया और इस मन के धोखे पर उन्हे ग्लानी हुई । कहा भी है -
"रत्न जटित मंदिर तजे, बहु सखियन का साथ ।
धिक मन धोके लाल के, धरा पीक पर हाथ ॥"
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
######## सत्य राम सा
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