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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*ये जु तुम्हारे काजी मुलना*
*झूठे मारत गाल ।*
*अपनै स्वारथ तुमहिं बतावैं*
*उनकौ दोजग हाल ॥३॥*
*इला इलाहि इलला की*
*सब घट मैं बरत मसाल ।*
*कलमा का तुम भेद न पाया*
*फूटा करम कपाल ॥४॥*
*यह तो महमद नां फुरमाया*
*जो तुम पकरी चाल ।*
*कीया षून तुम्हारी गरदनि*
*ह्वै हैं बुरा हबाल ॥५॥*
ये तुम्हारे काजी, मुल्ला, मौलाना आदि धार्मिक नेता भी गाल बजा बजा कर(उच्च स्वर में) अपने स्वार्थ को ही धार्मिक कहकर तुम्हें उपदेश कर रहे हैं । इनका अन्त में निश्चित ही नरकयोनि में पात होगा ॥३॥
अरे ! तुम्हारे इस पवित्र कलमा मन्त्र१ का तेजपुन्ज यद्यपि सर्वत्र प्रकाशमान है, परन्तु इस मन्त्र का यथार्थ(सत्य) तुम को ज्ञात नहीं हो सका । यही तुम्हारा दौर्भाग्य है ॥४॥
{१.मुसलमानों का कलमा मन्त्र : “ला इलाहे लिल्लिल्ला मोहम्मद रसूलिल्ला” ॥(परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई पूजने योग्य नहीं है । मुहम्मद उसका पैगम्बर है । उसकी आज्ञा को संसार में पहुँचाने वाला है ।)}
तुमने जो यह हिंसा का मार्ग ग्रहण किया है, इसका उपदेश तो मुहम्मद साहब ने नहीं दिया था । तुम तो यह यथार्थतः हिंसा कर रहे हो इसका प्रतिफल भोगते समय तुम्हारा बहुत बुरा हाल(स्थिति) बनेगा ॥५॥
(क्रमशः)
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