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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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३४ - मनुष्य देह महात्म्य । झपताल
ऐसा जन्म अमोक भाई,
जामें आइ मिलै राम राई ॥टेक॥
जामें प्राण प्रेम रस पीवै,
सदा सुहाग सेज सुख जीवै ॥१॥
आत्मा आइ राम सौं राती,
अखिल अमर धन पावे थाती ॥२॥
प्रकट दर्शन परसन पावै,
परम पुरुष मिल माँहिं समावै ॥३॥
ऐसा जन्म नहीं नर आवै,
सो क्यों दादू रत्न गवावैं ॥४॥
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मानव - तन की महिमा कह रहे हैं - हे भाई ! मनुष्य जन्म ऐसा अमूल्य है कि - इसमें आने पर विश्व के राजा राम भी मिल जाते हैं ।
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प्राणी भगवत् - प्रेम रस का पान करता है और सदा हृदय शय्या पर प्रभु को देखते हुये सौभाग्य सुख से जीवन व्यतीत करता है ।
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जीवात्मा साँसारिक भावनाओं से ऊपर आकर राम में अनुरक्त होता है और सम्पूर्ण विश्व के अमर धन परब्रह्म रूप धरोहर प्राप्त करता है ।
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इस प्रकार प्रत्यक्ष दर्शन, स्पर्श प्राप्त करके आत्मा परमपुरुष परमात्मा में मिल कर उसी में समा जाता है ।
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हे नर ! ऐसा जन्म चौरासी में अन्य नहीं प्राप्त होता, सो ऐसे रत्न रूप जन्म को विषयों में क्यों खो रहा है ?
(क्रमशः)

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