सोमवार, 2 सितंबर 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(१६५-६८)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*साहिब है पर हम नहीं, सब जग आवै जाइ ।*
*दादू सपना देखिये, जागत गया बिलाइ ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
मनुष्य देह दामिनि१ दमक, वेगावेगि२ सु जाय । 
रज्जब देखो हरि दरश, ढीला३ ढील४ न लाय ॥१६५॥ 
मनुष्य देह बिजली१ की चमक के समान शीघ्रातिशीघ्र२ जाने वाला है । अत: शीघ्र ही हरि - दर्शन करने का साधन कर, हे आलसी३ ! देर४ मत लगा । 
तन धन गृह गाफिल१ असत्य, ज्यों सु सलिल२ के झाग । 
दल३ बादल सब झूठ है, रज्जब परिहर४ राग ॥१६६॥ 
अरे असावधान१ ! शरीर धन घर ये सब जल३ के झागों के समान असत्य हैं और बादलों की घटा के समान भारी सेना४ भी मिथ्या है, इन सबका राग त्याग५ कर प्रभु से प्रेम कर । 
रज्जब मृग जल माँड१ सब, मानहु मिथ्या जग्ग२ । 
देखन को दरियाव है, तहां न पाणी नग्ग३ ॥१६७॥ 
यह ब्रह्माण्ड१ मय सब जगत्२ मृग तृष्णा के जल के समान मिथ्या है, देखने में तो मृग तृष्णा का दरियाव दीखता है किन्तु वहाँ की भूमि सर्वथा नंगी३ होती है, जल की बिन्दु भी नहीं होती, वैसे ही संसार दीखने मात्र का है । 
राम बिना सब झूठ है, ज्यों स्वपने सुख होय । 
रज्जब जागे चलि गया, कछू न देखे जोय ॥१६८॥ 
राम को छोड़कर जैसे स्वप्न मिथ्या होता है, वैसे ही सब मिथ्या है । देख स्वप्न का सुख जगने पर चला जाता है, कुछ भी नहीं रहता, वैसे ही ब्रह्म ज्ञान रूप जाग्रत आते ही, यह संसार राम रूप ही भासता है, राम से भिन्न कुछ भी नहीं भासता । 
(क्रमशः)

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