रविवार, 8 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू मन ही मांहि समझ कर, मन ही मांहि समाइ ।*
*मन ही मांहि राखिये, बाहर कहि न जनाइ ॥*
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भगवान ने कहा है ~
"मैं सारे संसार में विराजमान हूँ और संसार मुझमें'

एक बार एक निर्धन व्यक्ति जिसके पास खाने के लिये भी बर्तन नहीं थे उसको किसी ने खाने के लिये बर्तन दे दिये । उन बर्तनों में पीतल के दो गिलास भी निकले । अब वह व्यक्ति यह जताना चाहता था कि उसके पास पीतल के गिलास भी हैं उसकी गरीबी को जान गावँ के लोग उसके घर न के बराबर आया करते । अब उसके साथ दुविधा वह गिलासों को किसे और कैसे दिखाये ?
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अतः उसने एक युक्ति निकाली उसने उन गिलासों को एक थैले में रख कर बाहर जाता जब भी कोई उसे पानी पीने को देता तो वह उन गिलासों में ही पानी लेता या डालकर पीता ।
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ठीक यही स्थिति आज के अध्यात्म ज्ञानियों की हो चुकी है संसार को निभाने की दो कौड़ी का सहूर है नहीं बातें परमात्म को निभाने की लंबी लंबी । ये स्वम्भू कथित ध्यानी और ज्ञानी अगर इनके समक्ष मौजूद को इनके कथित ज्ञानी और ध्यानी होने का पता न हो या वो व्क्तिय नजरंदाज कर रहा हो ये पीतल के गिलास निकाल लेते हैं ।
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धार्मिक व्यक्ति कभी अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं करता । भजन और भोजन दोनों भीतर की बिषय वस्तु हैं । वस्तुतः इसकी एक विधि तो है पर प्रयोग का तरीका सबका अपना अपना । स्वाद भी सबका अपना अपना । आप किसी पर जबरन इन दोनों विषयों को थोप नहीं सकते ।
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जो लोग संसार और संसारी विषयों और लोगों को नकार देने की बात करते हैं वास्तविक रूप में वो खुद नकारे जाने योग्य हैं ।
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क्योंकि ये स्वयं के संसारी कार्यों को तो अध्यात्म से जोड़ देते हैं और किसी के कार्यों को उसके संसार ओर माया जाल में फंसा होने का उदाहरण दे उसका उपहास या ह्रास करते हैं ।
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जबकि जरूरत है मात्र ईमानदारी से जीवन व्यतीत करने की आप थोड़ा करो या ज्यादा उसमें आपने ईमानदारी कितनी करी । परमात्मा तो हमारी इच्छा शक्ति के रूप में भी है ।
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जय श्री कृष्णा

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