शनिवार, 7 सितंबर 2019

= ३९ =


🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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३९ - परिचय वैराग्य । दादरा
इनमें क्या लीजै क्या दीजे, 
जन्म अमोक छीजे ॥टेक॥
सोवत सुपिनाँ होई, 
जागे तैं नहिं कोई ।
मृगतृष्णा जल जैसा, 
चेत देख जग ऐसा ॥१॥
बाजी भरम दिखावा, 
बाजीगर डहकावा१ ।
दादू संगी तेरा, 
कोई नहीं किस केरा ॥२॥
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प्रत्यक्ष रूप से वैराग्य का उपदेश कर रहे हैं - 
अरे ! इन विषयों में क्या लेना देना है ? व्यर्थ ही अमूल्य मानव जन्म क्षीण होता है । 
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ये तो अज्ञान निद्रा में सोया हुआ है, तब तक ही स्वप्नवत् भास रहे हैं, ज्ञान जाग्रत होते ही कोई भी न रहेगा । सचेत होकर देख, यह सँसार मृग - तृष्णा के जलवत् प्रतीति मात्र ही है । 
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जैसे बाजीगर बाजी दिखा कर बहकाता१ है, वैसे ही भ्रम से सत्य भास रहा है । वास्तव में इस सँसार में न तेरा कोई साथी है और न तू ही किसी का है ।
(क्रमशः)

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