मंगलवार, 3 सितंबर 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(१६९-७२)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*जे नांही सो देखिये, सूता सपने माँहि ।*
*दादू झूठा ह्वै गया, जागे तो कुछ नांहि ॥*
*यहु सब माया मृग जल, झूठा झिलमिल होइ ।*
*दादू चिलका देखि कर, सत कर जाना सोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
राम बिना सब झूठ है, मृग तृष्णा का रूप । 
रज्जब धावै नीर को, जहाँ जाय तहं धूप ॥१६९॥ 
राम को छोड़कर सब मृग तृष्णा के जल के समान मिथ्या है, जैसे मृग, मृगतृष्णा के जल को पान करने के लिये दौड़ते हैं किन्तु जहाँ जाते हैं, वहाँ ही सूर्य की धूप ही मिलती है जल नहीं । वैसे ही प्राणी सुख के लिये दौड़ता है किन्तु सुख न मिलकर दु:ख ही मिलता है । 
शीतकोट१ अरु भडलिका२, तीजे स्वप्ना सैन३ । 
रज्जब यूं संसार है, नहीं सुदीसै ऐन४ ॥१७०॥ 
गंधर्व नगर१, भोडल में चाँदी२ और तीसरा स्वप्न ये तीनों प्रत्यक्ष दीखते तो हैं किन्तु होते नहीं, वैसे ही संत ने संसार के विषय में संकेत४ किया है कि - संसार प्रत्यक्ष३ दीखता है किन्तु है नहीं । 
रज्जब बादल बुदबुदे, तीजे जल के झाग । 
चतुर्खानि चखि१ देखिये, है नाँहीं भ्रम भाग ॥१७१॥ 
बादल, बुदबुदे और जल के झाग ये तीनों अल्प समय ही दीखते हैं स्थायी नहीं हैं, वैसे ही जरायुज अंडज, स्वेदज, उदभिज, यह चार खानिरूप संसार भी अज्ञान काल में ही नेत्रों१ से भासता है, सत्य नहीं है, ज्ञान होते ही हमारा भ्रम दूर हो गया है । वैसे ही ज्ञान होने पर सबका भ्रम भाग जाता है । 
रज्जब स्वप्ना शक्ति१ सैन२, मन मिथ्या देखै सु मैन३ । 
जाग देखि दीसै सो नाँहीं, रे मन मूरख समझी माँहीं ॥१७२॥ 
अरे मूर्ख मन ! तू संत-शास्त्रों के संकेत२ को अपने भीतर समझ । यह मायिक१ सुख स्वप्न में दीखने वाले काम३-सुख के समान मिथ्या है । जैसे जगकर देखने पर स्वप्न - सुख सत्य नहीं दीखता, वैसे ही ब्रह्म-ज्ञान होने पर जाग्रत का मायिक सुख भी सत्य नहीं भासता । 
(क्रमशः)

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