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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*नैनहुँ सौं रस पीजिये, दादू सुरति सहेत ।*
*तन मन मंगल होत है, हरि सौं लागा हेत ॥*
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साभार ~ Raj Gupt
मोजेज के जीवन में उल्लेख है। एक पहाड़ी रास्ते से गुजरते थे। एक गरीब आदमी को प्रार्थना करते देखा। फटे-पुराने कपड़े थे, धूल-धूसर थे, पसीने से लथपथ था--गड़रिया था।
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वह कह रहा था परमात्मा से कि हे प्रभु, अगर मुझे मौका दे, अगर मुझे अपने तू पास रख, तो रोज तुझे खूब घिस-घिसकर नहला दूंगा। तेरी जूंए भी निकाल दूंगा। पिस्सू इत्यादि तेरे शरीर पर आ जाते होंगे, एक न बचने दूंगा। तू देख मेरी भेड़ों को, कैसा साफ-सुथरा रखता हूं ! तू जरा मुझे मौका तो दे। थक जाएगा, रात तेरे पैर दबा दूंगा। ऐसे दबाऊंगा कि गहरी नींद आ जाएगी।
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मोजेज ने सुना तो बड़े घबड़ाए कि प्रार्थनाएं बहुत सुनीं, यह नालायक क्या कह रहा है? तेरी रोटी भी पका दूंगा। तू घर के बाहर जाएगा, घर भी साफ-सुथरा...एक जरा मौका तो दे।
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उसको बीच में जाकर हिलाया और कहा, नासमझ ! यह तू क्या बक रहा है? यह प्रार्थना है? वापस ले ये शब्द। यह तो परमात्मा का अपमान कर रहा है। जूंए। परमात्मा पर ! तूने कोई भेड़ समझी है? तू नहलाएगा-धुलाएगा। तूने कोई परमात्मा को गंदा समझा है ! तू पैर दबाएगा। परमात्मा कभी थकता है ! वह गड़रिया तो बहुत घबड़ा गया। उसने कहा कि मुझे क्षमा करो, मुझे मालूम नहीं।
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'ना जानूं मैं आरती-वंदन, ना पूजा की रीत।'
वह भाग गया गड़रिया तो अपनी भेड़ें सम्हालकर कि यह तो कहां की झंझट है ! उसने कहा, अब कभी प्रार्थना न करेंगे। माफ करो, मैं जानता ही नहीं, मैं तो यही करता रहा सदा से। बड़ा पाप हुआ।
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वह गया नहीं था कि परमात्मा की आवाज गूंजी कि मोजेज, मैंने तुझे भेजा था कि जो मुझसे भटके हों, मुझे उनसे जुड़ा देना। तूने तो मुझसे जो जुड़ा था, उसको अलग कर दिया। उसका प्यार तो देख ! उसका भाव तो देख! उसका हृदय तो पहचान ! तू तो रीति-नियम में खो गया। जा उससे माफी मांग, और उससे प्रार्थना सीख। बहुत मेरे प्यारे हैं, पर वैसा कोई भी नहीं।
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मोजेज ने ढूंढ़ा उसे जंगल में, उसके पैर पर गिर पड़े कि मुझे क्षमा कर, तू अपनी प्रार्थना जारी रख। तुझे जितने जूं निकालने हों, निकाल। तुझे जितना नहलाना हो, नहला। वह खुश, तो मैं बीच में कौन? तू जान, तेरा काम जाने। मुझे अच्छा फंसाया !
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ध्यान रखो, जीवन के परम सत्य रीति-नियम से नहीं मिलते। औपचारिक नहीं हैं। धर्म का जगत भाव का जगत है। वहां तुमने प्रार्थना कैसे की, इसका कोई संबंध नहीं है। प्रार्थना की, इसका संबंध है। भाव था, गहरा था, तुम डूबे थे, फिर ठीक है।
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ऊपर-ऊपर शब्द दोहरा रहे थे, रटी हुई प्रार्थना को दोहरा रहे थे, व्याकरण भी शुद्ध थी, भाषा भी शुद्ध थी, उससे क्या होगा? कोई परमात्मा को व्याकरण सीखनी है ! कि परमात्मा को भाषा सीखनी है ! कि परमात्मा को तुम वेद-उपनिषद और गीता सुनाकर कुछ नयी बात सुना रहे होओगे ! नहीं, परमात्मा तुम्हारा हृदय मांगता है। तुम्हें मांगता है। रीति-नियम नहीं।
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छोड़ो फिकर। नहीं जानते, शुभ है। सहज-स्फूर्त हो, सरलता से उठे, तुम्हारे जीवन के सत्य को लेकर आती हो; तुम्हारी मगनता, तुम्हारे उन्माद, तुम्हारे हर्ष को प्रगट करती हो; तुम्हारे नृत्य को, तुम्हारे आंसुओं को, तुम्हारे गीत को प्रगट करती हो, हो गयी बात।
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तुम परमात्मा का नाम भी मत लो, तो भी चलेगा। मगर तुम्हारा नाच हार्दिक हो। और तुम्हारे आंसू असली हों। नकली न हों। तुम बड़े कुशल हो गए हो नकली आंसू लाने में।
-- एस धम्मो सनंतनो # 57
🌹🌹🌹🙏 ओशो

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