बुधवार, 4 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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३६ - उपदेश चेतावनी । एकताल
कौण जनम कहं जाता है, 
अरे भाई, राम छाड़ि कहं राता है ॥टेक॥
मैं मैं मेरी इन सौं लाग, 
स्वाद पतँग न सूझै आग ॥१॥
विषयोँ सौं रत गर्व गुमान, 
कुंजर काम बंधे अभिमान ॥२॥
लोभ मोह मद माया फँध, 
ज्यों जल मीन न चेतै अँध ॥३॥
दादू यहु तन यों ही जाइ, 
राम विमुख मर गये विलाइ ॥४॥
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३६ - ३८ में उपदेश द्वारा सावधान कर रहे हैं - 
अरे भाई ! तेरा यह नर - जन्म किस लिये हुआ है और तू किधर जा रहा है ? यह तो राम की प्राप्ति के लिए हुआ था, किन्तु तू राम भक्ति को छोड़कर कहां अनुरक्त हो रहा है ? 
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जिन विषयों में, "मैं महान् हूं, ये नारी, सम्पत्ति मेरी है ।" इस प्रकार अहँकार द्वारा अनुरक्त हो रहा है, वे तेरे कल्याण में बाधक हैं । रूपास्वादन के वश पतँग को जैसे दीपक - ज्योति अग्नि रूप नहीं भासती और वह उसमें जल मरता है, वैसे ही तुझे भी सौन्दर्य अग्नि रूप नहीं दीखता, तू भी उसमें पड़कर परमार्थ दृष्टि से मर जाता है । 
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जैसे हस्ति काम - वश होकर अपने मिथ्याभिमान से बन्धन में पड़ जाता है(हस्ति को पकड़ने वाले गहरे गड्ढे को छाप कर उस पर कागज की हथिनी रख देते हैं, हाथी उस पर कूद कर गड्ढे में पड़ जाता है । फिर भूख - प्यास से निर्बल करके उसे बांध लाते हैं) वैसे ही तू बल के घमँड और धन के अभिमान से विषयों में अनुरक्त हो रहा है । 
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जैसे जल में मच्छी स्वतँत्र होकर भी जिव्हा - रस के वश होकर फँदे में पड़ जाती है, वैसे ही ज्ञान - नेत्रों से हीन तू भी लोभ, मोह, मदादि रूप माया के फँदे में पड़ता है, सावधान नहीं होता । 
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राम से विमुख अनेक मानव जन्म - जन्म कर चौरासी में चले गये हैं, उनका कोई पता नहीं । वैसे ही यह तेरा नर शरीर भी व्यर्थ ही नष्ट हो जायेगा । अत: राम - भजन कर ।
(क्रमशः)

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