बुधवार, 4 सितंबर 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(१७३-७६)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*आपा पर सब दूर कर, राम नाम रस लाग ।*
*दादू अवसर जात है, जाग सकै तो जाग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ चितावणी का अंग)*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
सुर नर देवी देवता, सूता स्वप्ने माँहिं । 
तो रज्जब रामति१ रचै२, सो जागै कोउ नाँहिं ॥१७३॥ 
देवता, नर, ग्राम देवी - देवता आदि सभी मोह निद्रा में सोये हुये स्वप्न देख रहे हैं । जो संसार भ्रमण१ वा क्रीड़ा१ में अनुरक्त२ है, उसमें कोई भी नहीं जाग सकता । 
गुदड़ी ज्यों गृह१ के मिले, तिन विछुरत क्या बेर । 
रज्जब संतति२ शक्ति३ की, हटवारे दिशि हेर४ ॥१७४॥ 
गुदड़ी के बाजार के समान घर१ वालों का मिलन है, जैसे वह बाजार सांयकाल बिखर जाता है, वैसे ही घरवालों को बिखेरते क्या देर लगेगी । हटवाड़े के बाजार की ओर देखो४, जैसे वहां की मायिक३ वस्तुयें इधर उधर हो जाती है वैसे ही संतान२ इधर उधर हो जाती है, सदा साथ नहीं रहती । 
रज्जब रज घर वास तन, शिशु रामति१ संसार । 
सो मंदिर२ रचि मेटतों, कहो कितीइक बार ॥१७५॥ 
जैसे रज कणों के बने हुये घर में अस्थायी निवास होता है, वैसे ही इस शरीर में अस्थायी निवास है । यह संसार बच्चों के बनाये हुये क्रीड़ा१ गृहों के समान है । उन खेलने के लिये बनाये हुये घरों२ को बनाते बिगाड़ते कहो, कितनीक देर लगती है ? वैसे ही तुम्हारे संसार को बिगाड़ते, कहो कितनीक देर लगती है ? वैसे ही तुम्हारे संसार को बिगड़ते क्या देर लगेगी ? 
जन रज्जब रजु सर्प जग, यूं जाणों संसार । 
तिनहीं न शंका विष चढै, औषधि परम विचार ॥१७६॥ 
रज्जब रज्जु सर्प के समान मिथ्या है, रस्सी के सर्प का विष नहीं चढता, वैसे ही संसार को मिथ्या जानते हैं, उन्हें संसार के विषय-विष चढने की शंका नहीं होती, उनके पास ब्रह्म विचार रूप परम औषधि होती है ।
(क्रमशः)

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