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**#श्री०दादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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५१ - सँजीवनी । पँचम ताल
राम विमुख जग मर मर जाइ,
जीवैं सँत रहें ल्यौ लाइ ॥टेक॥
लीन भये जे आतम रामा,
सदा सजीवन कीये नामा ॥१॥
अमृत राम रसायन पीया,
तातैं अमर कबीरा कीया ॥२॥
राम राम कह राम समाना,
जन रैदास मिले भगवाना ॥३॥
आदि अन्त केते कलि जागे,
अमर भये अविनासी लागे ॥४॥
राम रसायन दादू माते,
अविचल भये राम रँग राते ॥५॥
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५१ - ५२ में सँजीवनी राम रसायन का परिचय दे रहे हैं -
राम से विमुख मानव मर - मर कर चौरासी लक्ष योनियों में जा रहे हैं । जो सँत अपनी वृत्ति राम में लगावे रहते हैं, वे राम रूप होकर सदा जीवित रहते हैं ।
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जो भी आत्म स्वरूप राम के भजन में लीन हुये हैं, वे सभी सजीवन भाव को प्राप्त हुये हैं ।
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राम - भजन ने नामदेव को सदा के लिए सँजीवन कर दिया । राम - भक्ति रूप अमृत रसायन पान किया, इसी से कबीर अमर हो गये ।
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राम - राम करके राम के समान निर्विकार होकर भक्त रैदास भगवान् में मिल गये ।
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सृष्टि के आदि से इस कलियुग के समय तक कितने ही सँत अविनाशी परब्रह्म के चिन्तन में लगकर अज्ञान निद्रा से जगे हैं, वे सभी परब्रह्म को प्राप्त होकर अमर हो गये हैं ।
(क्रमशः)
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