#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*झूठी माया है कछु नांहीं*
*मृग तृष्णा मैं झूल्यौ रे ॥२॥*
*जित जित फिरै भटकतौ यौं ही*
*जैसैं बायु बघूल्यौं रे ॥३॥*
*सुन्दर कहत संमुझि नंहिं कोई*
*भवसागर मैं डूल्यौ रे ॥४॥२००॥*
यह मिथ्या माया कुछ नहीं है, केवल मृगतृष्णा के समान असत्य है ॥२॥
तूँ इसमें फँस कर ऐसे ही इधर उधर भटकता है, जैसे भयंकर आंधी हो ॥३॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – तूँ समझ नहीं पा रहा है, तूँ तो अब भवसागर में इधर उधर लुढ़क रहा है ॥४॥२००॥
(क्रमशः)

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