मंगलवार, 3 सितंबर 2019

= १४ =

卐 सत्यराम सा 卐
*आपा पर सब दूर कर, राम नाम रस लाग ।*
*दादू अवसर जात है, जाग सकै तो जाग ॥* 
*बार बार यह तन नहीं, नर नारायण देह ।*
*दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलिक येह ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ चितावणी का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*भजन कभी कर लूंगा यह विचार उचित नहीं -*
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कर लुंगा मैं भजन भी, कथन उचित यह नाँहि ।
समझाया भल नारि ने, ताप वेग के माँहि ॥१०४॥
एक घर में दो पति और पत्नि ही थे । पत्नि का ईश्वर में प्रेम था, वह भगवत् भजन सतसंग आदि करती रहती थी और अपने पति देव से भी प्रार्थना करती रहती थी कि "आप कुछ ईश्वर भजन भी किया करें ।" पति कह देते थे कि - "अभी क्या जल्दी है कर लेंगे कभी ।" 
ऐसे ही कहते सुनते पति बिमार हो गया । वैद्य को बुलवाया गया, उसने देख कर के कहा - मेरे साथ किसी को भेज दो औषधि दे दूंगा । 
पत्नि स्वयं गई और औषधि लाकर एक ऊंचे ताक में रख दी । कुछ देर बाद पति ने पुछा - "दवा लाई ?" जी हां, ले आई । पति - फिर देती क्यो नहीं हो ? पत्नि - दे दूंगी क्या जल्दी है ? आधा घन्टे के बाद फिर पति ने कहा - "दवा दे दो", पत्नि - "दे दूंगी क्या जल्दी है ?" 
पति कुपित होकर बोला "फिर कब दे दोगी, मैं तो मर रहा हूं, फिर दवा क्या करेगी ?" पत्नि - अभी आप कैसे मरेंगे ? आप तो बारंबार कहां करते है कि भजन करने की क्या जल्दी है ? अभी तो बहुत जीना है, कभी कर लेंगे ।
पत्नि की बात सुनते ही उसके समझ में आ गई और वह नम्रता से बोला "तुम ठीक कहती हो, जीवन का कोई भरोसा नही अब मैं अवश्य भजन करूंगा । लाओ दवा दो जिससे मेरा ताप(ज्वर) उतर जाय ।
इससे सूचित होता है कि भजन कर लूंगा यह विचार नहीं करके प्रत्येक कार्य के साथ ही भजन करना चाहिये ।
### स्मरण भक्ति ### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
######## सत्य राम सा

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