सोमवार, 16 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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४८ - राज विद्याधर ताल
पूर रह्या परमेश्वर मेरा, 
अणमांग्या देवै बहुतेरा ॥टेक॥
सिरजनहार सहज में देइ, 
तो काहे धाइ मांग जन लेइ ॥१॥
विश्वँभर सब जग को पूरै, 
उदर काज नर काहे झूरै१ ॥२॥
पूरक२ पूरा३ है गोपाल, 
सबकी चिन्त४ करै दरहाल५ ॥३॥
समर्थ सोई है जगन्नाथ, 
दादू देख रहे संग साथ॥४॥
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मेरा मनोरथ परमेश्वर पूर्ण कर रहे हैं, बिना याचना ही बहुत देते हैं ।
जब परमात्मा अनायास ही देते हैं,तब लोग क्यों दौड़ के मांग कर लेने का प्रयत्न करते हैं ? 
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विश्वम्भर परमात्मा तो सँपूर्ण जगत् का भरण - पोषण करते हैं, फिर नर शरीर पाकर भी पेट भरने के लिए क्यों विकल१ हो रहा है ? 
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वह परिपूर्ण३ परमात्मा सब मनोरथ पूर्ण करनेवाला२ है । प्रतिक्षण५ सबकी चिन्ता४ करके संभाल करता है । 
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तू विचार करके देख, वह समर्थ जगन्नाथ तेरे संग है और तू भी उनके साथ ही है ।
(क्रमशः)

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