सोमवार, 16 सितंबर 2019

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*दादू आप स्वारथ सब सगे, प्राण सनेही नांहि ।*
*प्राण सनेही राम है, कै साधु कलि मांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal​
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ##भाग १ ##स्वार्थ*
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बँधे परस्पर स्वार्थ में, करें स्वार्थ हित प्रेम ।
भाँड समझ कर संत से, करन लगा निज क्षेम ॥७३॥
एक भाँड ने एक संत से कहा करता था कि कुटुम्ब ने मुझे बाँध रक्खा है नहीं तो मैं भजन ही करता । 
एक दिन भांड पशुओं को लेकर वन में जा रहा था । सन्त शौच जाकर आ रहे थे । भाँड को देखकर एक एक वृक्ष को पकड़ कर जोर जोर से आवाज देने लगे - "छुड़ाओ-छुड़ाओ ।" 
भाँड दौड़ कर आया और बोला - "क्या बात है ?"
संत - "अरे ! इस वृक्ष ने मुझे पकड़ लिया है तू छुड़ा दे ।"
भाँड - "हँसकर, वृक्ष को आपने ही पकड़ रखा है वृक्ष ने आपको नहीं ।"
संत - "फिर तू क्यों कहता है कि कुटुम्ब ने मुझे बाँध रक्खा है, तू ही तो अपने स्वार्थ से बँधा है, आज छोड़ दे, देख तुझे वे याद तक नहीं करेंगे ।"
भाँड संत की बात मान कई महीनों तक घर न गया । स्त्री ने गाँव से प्रार्थना की, गाँव ने उसका प्रबन्ध कर दिया ।
कुछ दिन बाद भाँड रात को घर की बारी में से शिर भीतर किया कि लड़के ने देख लिया और बोला - "बाप-बाप ।"
यह सुनकर उसकी मां बोली - "उसे अभागे को क्यों याद करता है, उसके मरने पर ही तो आराम मिला है ।"
यह सुनकर भाँड समझ गया और पीछा ही जाकर भजन करने लगा ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्य राम सा ###

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