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*कहै लखै सो मानवी, सैन लखै सो साध ।*
*मन लखै सो देवता, दादू अगम अगाध ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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##श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु भाग दो###
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समझत गुरु संकेत को, बिरले ही मतिमान ।
समझा शिष्य न शुक समझ, छुटा पंखडे तान ॥१४॥
एक संत का शिष्य भिक्षा लेने जाता था ।
एक घर पर जाति स्मर तोता पिंजरै में बंधा था । उसने भिक्षु से पूछा कि "संसार में रामनाम मुक्ति का कारण माना गया है, किन्तु मैं इस पिंजरे में बैठा हुआ बहुत समय से राम-नाम कर रहा हूँ फिर भी मैं नही छूट सका, इसका क्या कारण है ? तुम गुरु से पुछ कर मुझे बताओ ।" शिष्य ने गुरुजी से कहा।
गुरु जी तोते की बात सुन कर बेहोस होकर गिर पड़े । शिष्य ने जो कुछ हो सका यत्न किया, गुरुजी होस में आ गये ।
दूसरे दिन भिक्षु से शुक(तोता) ने पुछा - "कहो गुरुजी ने क्या कहा ?" शिष्य - "चुप रहो मैं नहीं पूछूंगा, कारण गत दिन तुम्हारी बात सुनते ही गुरुजी बेहोस हो गये थे । फिर जल आदि छिड़कने से कठिनता से होश में आये ।"
तोता समझ गया दूसरे दिन बेहोश होकर पिंजरे में गिर गया ।
मालिक ने बाहर निकाला जल छिड़का और पांखे गीली जान कर छोड़ दिया । कुछ देर बाद उड़ गया ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
######## सत्य राम सा

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