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*बाजी भरम दिखावा, बाजीगर डहकावा ॥*
*दादू संगी तेरा, कोई नहीं किस केरा ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३९)*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
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कौल१ चूक२ जीव आदि का, भूला भोंदू३ वाच४ ।
रज्जब झूठा राम सौं, सो क्यों बोलै साच ॥१८१॥
जीव पहले का ही प्रतिज्ञा१ भूलने२ वाला है, गर्भ में प्रभु से कहा था कि " आपका भजन करूंगा मुझे गर्भ गुहा से बाहर निकालो" उस अपने वचन३ को भी मूर्ख४ भूल गया, जो राम से भी झूठा पड़ गया है, भजन नहीं करता, वह सत्य कैसे बोलेगा ।
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जगपति जीव जुदे किये, तब के झूठे जाणि ।
अबहिं साच बोलहिं सु क्यों, पड़ी झूठ की वाणी ॥१८२॥
जगतपति प्रभु ने जब से जीवों को अपने से अलग कर दिया तब से इनको झूठा ही जानना चाहिये । अब तो ये सत्य कैसे बोल सकते हैं ? इनका तो झूठ बोलने का स्वभाव ही पड़ गया है ।
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प्राण पिण्ड की सन्तति झूठी, तो सच कौण सौं होय ।
रज्जब मिथ्या माया मेला, जिनि१ रु पतीजे२ कोय ॥१८३॥
झुठे प्राणी के शरीर की सन्तान भी झूठी ही है, तब सत्य का व्यवहार किससे होगा ? यह मिथ्या माया का ही मेला लगा है, इसके सत्य होने का विश्वास२ कोई क्यों१ करे ।
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साचे ने झूठी करी, सो साची क्यों होय ।
रज्जब देखो दिव्य दृष्टि, मनसा वाचा जोय ॥१८४॥
सत्य प्रभु ने माया को मिथ्या ही रचा है, तब यह सत्य कैसे होगी ? उसका मिथ्यात्व दिव्य दृष्टि से तथा मन से यथार्थ वचनों को विचार करके देखो ।
(क्रमशः)
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