गुरुवार, 12 सितंबर 2019

= सुन्दर पदावली(२७. राग धनाश्री - २/३) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*मादर पिदर पिसर बिरादर*
*झूठ मुलक सब माल ।* 
*इनमें काहे जरत दिवाने*
*देषि अग्नि की झाल ॥६॥* 
*अजहूं समझ तरस करि जिय में*
*छाडि सकल जंजाल ।* 
*करि दिल पाक षाक मैं मिलि है*
*नियरै आवत काल ॥७॥* 
*सांई सेती साटि मिलावै*
*सोई पूछ दलाल ।* 
*सुन्दरदास अरस के ऊपरि*
*रहै धनी कै नाल ॥८॥* 
यहाँ माता, पिता तथा अन्य जाति विरादर एवं भौतिक सम्पति आदि सभी कुछ मिथ्या हैं । इनके कमाने, संग्रह करने के चक्र में तूँ क्यों पड़ा है ? इस चक्र में पड़ने से एक न एक दिन तेरा सब कुछ स्वाहा हो(जल) जायगा ॥६॥
तूँ अपने आप पर अब भी दया कर । अब भी सम्हल जा । तथा इस समस्त मायाजाल का त्याग कर दे । इस बात को अपने हृदय में भली भांति समझ ले कि एक दिन तुझको मिट्टी में मिल जाना है । क्योंकि तेरी मृत्यु समीप ही है ॥७॥ 
तेरा हित इसी में है कि तूँ अपने प्रभु से मेल करने वाले दलालों(साधू-सन्तों) से वह मार्ग पुछ ले जिस पर चलता हुआ तूँ एक दिन आकाश में विराजमान अपने स्वामी के साथ जाकर बैठ सके ॥८॥
(क्रमशः)

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