#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*अति बिवोग लिये जोग भोग काहि भावै ।*
*तुही तुही मन मांहिं जपत और न कहि आवै ॥२॥*
*तात मात बंधू सुत तजी लोक लाजा ।*
*तुम बिना सुष और सकल मेरे किंहिं काजा ॥३॥*
*प्रभु दयाल कहियत हौ सकल अँतरजाँमी ।*
*काहे न सँभाल करहु सुन्दर के स्वाँमी ॥४॥*
अब मैंने, आपसे वियोग के कारण, संसार से वैराग्य ग्रहण कर लिया है, मुझे संसार का कोई विषय भोग मनमोहक नहीं लगता । मेरा मन अब दिन रात आपके नाम का ही जप करता रहता है । अब यहाँ इसे अन्य कुछ भी अच्छा नहीं लगता ॥२॥
इसने अब समस्त लोकलाज छोड़कर, आपके लिये अपने माता पिता भाई, बन्धु पुत्र आदि का भी त्याग कर दिया है । इसकी अब यही धारणा बन गयी है कि संसार के सभी सुख अब मेरा क्या प्रयोजन सिद्ध करेंगे ॥३॥
हे प्रभो ! आप ‘दयालु’ कहलाते हो ! आप घट घट के अन्तर्यामी हैं । श्री सुन्दरदासजी कहते हैं – हे स्वामिन् ! अब भी आप मेरी रक्षा क्यों नहीं करते ! ॥४॥
(क्रमशः)

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